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उद्गार

डॉ. किरन अवस्थी
मिनियापोलिसम (अमेरिका)

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उद्गार लालायित हैं
उद्गार भरे मन को
लेखनीबद्ध करने को
स्तंभकार बनाने जीवन को।
उद्गारों का ही खेल है लेखन
लेख, कहानी, उपन्यास मन
अगन, पवन, विज्ञान ज्ञान
धरा, जलधि, पाताल, गगन।
अंबर पर चंदा सूरज
नवग्रह का जाल बिछा है
धरती पर पल्लव, वृक्षों का
गहन अंधकार छुपा है ।
आदिमानव के मन
अनुभूति क्षुधा, प्यास की
आपस में घिस पाहन को
अनल ज्वाल प्रज्ज्वलित की।
भाषा का आविष्कार तभी
जब मन‌ में उद्गार भरे हों
वेद पुराण उपनिषद् शास्त्र
अष्टाध्यायी या नाट्यशास्त्र
अभिज्ञान शाकुन्तल या कादंबरी
मुद्राराक्षस या राजतरंगिणी।
क्षत-विक्षत आहत तन हुआ
आयुर्वेद का आविष्कार हुआ
जब वर्षा की मृदुल फुहार
गीत नर्तन का जन्म हुआ।
मन रोया, आदि कवि की सृष्टि
युवाकाल की हंसी निराली
प्रेम, विनोद, क्रोध, विभीषिका
व्यंग्य हास्य नवरस की उत्पत्ति।
जो उद्गार उदित, सब लिख डाला
मानव को शोधी, ग्रंथी बना डाला
जो उद्गार न हो तो क्या जीवन
प्रकृति को सरस बना डाला।

परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी
सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर
निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश)
वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका)
शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान
सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती।
पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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