प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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श्रमिकों का नित ही है वंदन, जिनसे उजियारा है।
श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।।
खींच रहे हैं भारी बोझा, पर बिल्कुल ना हारे।
ठिलिया, रिक्शा जिनकी रोज़ी, वे ही नित्य सहारे।।
मेहनत की खाते हैं हरदम, धनिकों पर धिक्कारा है।
श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।।
खेत और खलिहानों में जो, राष्ट्रप्रगति के वाहक ।
अन्न उगाते, स्वेद बहाते, जो सचमुच फलदायक ।।
श्रम के आगे सभी पराजित, श्रम का जयकारा है।
श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।।
सड़कों, पाँतों, जलयानों को, जिन ने नित्य सँवारा।
यंत्रों के आधार बने जो, हर बाधा को मारा।।
संघर्षों की आँधी खेले, साहस जिन पर वारा है।
श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।।
ऊँचे भवनों की नींवें जो,उ त्पादन जिनसे है।
हर गाड़ी, मोबाइल में जो, अभिवादन जिनसे है।।
स्वेद बहा, लाता खुशहाली, श्रमसीकर प्यारा है।
श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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