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मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …

रमाकान्त चौधरी
लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

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छोड़ कर काम सारे चले आइए,
मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना।
मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …

बंद आंखें करूं तो दिखो तुम ही तुम,
आंखें कब तक खुली बोलो रख पाऊंगा।
झूठ बोलूं ये आदत में शामिल नहीं,
प्यार की बात कब तक छुपाऊंगा मैं।
लाख मुस्काऊं मैं नए कपडे पहन,
कुछ भी जंचता नहीं अब तुम्हारे बिना।
मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …

देखकर दोस्त मुझको ये कहते सभी,
इसकी हालत बिगड़ती चली जा रही।
लग रहा आजकल ये भी पीने लगा,
चमक इसकी उतरती चली जा रही।
काम उल्टे सभी हो रहे आजकल,
कोई टोके नहीं अब तुम्हारे बिना।
मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …

कल की घटना बताऊं मैं घर से चला,
राह में एक लड़की से टकरा गया।
उसने दी गलियां मुझको पीटा बहुत,
वो बोली ये लड़का है पगला गया।
उसको कैसे बताता मैं बेहोश था,
मेरी हालत ये बिगड़ी तुम्हारे बिना।
मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …

सुबह मम्मी ने भेजा दही लाने को,
मैं ले करके मठ्ठा वहीं पी गया।
घर पहुंचते ही मम्मी ने मांगा दही,
होश आया मुझे मेरा मुंह सी गया।
बोली पागल दिवाने तू कब सुधरेगा,
ठीक कुछ भी नहीं अब तुम्हारे बिना।
मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …

एग्जाम था मेरा इतिहास का,
उसपे सारी कहानी तुम्हारी लिखी।
देख कॉपी को मास्टर जी चकरा गए,
उसपे शादी की सारी तैयारी लिखी।
याद आया जब डंडे पड़े पीठ पर,
प्यार इतिहास है सब तुम्हारे बिना।
मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …

छोड़ कर काम सारे चले आइए,
मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना।

परिचय :-  रमाकान्त चौधरी
शिक्षा : परास्नातक
व्यवसाय : वकालत
निवासी : गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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