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आपका उड़ेला जहर

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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हां भरा है जहर मेरे
मन मस्तिष्क में,
पर इसे उड़ेलने वाला,
भरने वाला कौन है?
वो आप हैं,
आपकी मत्वाकांक्षाएँ है,
आपके सत्ता
प्राप्ति की ललक है,
खुद आप दिखला
चुके झलक हैं,
आपकी बातों में आकर
मेरा हितैषी पड़ोसी
मुझे खटकता है,
मेरा जमीर,
मेरी इंसानियत
पता नहीं कहां
कहां भटकता है,
कल तक थे हम भाई-भाई,
तूने ही हमारी
खुशियों में आग लगायी,
आपके भड़काने से
आपको लाभ
हुआ जबरदस्त,
पर मैं बुरी तरह
हारा हुआ महसूस कर
हो गया हूं पस्त,
आज जान पाया कि
एकमात्र सत्ता की है
आपको भूख,
मगर समता,बंधुत्व
और मानवता वाली
आपकी सारी
तंत्रिकाएं गयी है सूख,
प्रकृति आपको हुनर बांटे,
कहीं आपका उड़ेला जहर
आप ही को न काटे।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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