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मातृशक्ति

किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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“रोज ही मातृ दिवस मनाओ,
झुझती वह हर रोज है,
हर पल पग-पग देती परीक्षा,
कभी माँ बन कभी सासु वो”

कितनी भी रणचंडी बन ले,
प्रेम झलकता आंखों में,
कभी हाथों में तलवार है उसके,
कभी हाथों में बेटा है।

कभी घोड़े पर असवार है होती,
कभी घोड़ा बन जाती वो,
कभी रक्त से तलवार है धोती,
कभी कलम चलाती वो।

कभी सिंहासन राज है करती,
कभी वन वन में डोले वो,
कभी बेटे का बलिदान है करती,
कभी पन्नाधाय बन जाती वो।

एक आंख में आंसू उसके,
एक में प्रेम झलकाती वो ,
एक पल में रोना है उसका,
एक पल में हंस जाती वो।

कितना त्याग बलिदान है उसका,
कभी चण्डी कभी दुर्गा वो,
कभी जनक दुलारी सीता बनती,
कभी वन देवी बन जाती वो।

कभी हल से वह पैदा होती,
कभी-कभी अग्नि परीक्षा देती वो,
कभी धरती फट समा वह जाती,
वह भारत की बेटी जो।

कभी घूंघट की लाज किरण वह
कभी तेज सूरज की किरण वो,
कभी अग्नि की ज्वाला बनती,
कभी प्रकृति की कवयित्री वो।

परिचय : किरण पोरवाल
पति : विजय पोरवाल
निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स
व्यवसाय : बिजनेस वूमेन
विशिष्ट उपलब्धियां :
१. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित
२. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित
३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना
रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंडला आर्ट एवं संगीत
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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