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उषाकाल

डॉ. किरन अवस्थी
मिनियापोलिसम (अमेरिका)

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उषाकाल में सागर तट पर
रवि की सारथि बन
अरुण की अरुणाई
छा गई विश्वपटल पर।
उसकी सुखद मृदु छाया
भा गई धरती को बन माया
आभास दिवस का आया
कर्म को गति, प्रकाश छाया
अविरलअनन्त अस्तित्व उसी का
जिससे बहती जीवनधार
जिससे ही आल्हादित, स्पंदित हो
अग्र बढ़े यह संसार।

परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी
सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर
निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश)
वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका)
शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान
सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती।
पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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