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तो समझो बसंत आया है

प्रमेशदीप मानिकपुरी
भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़)
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पलाश भी अब झूम उठे
नव कोपल भी खिल उठे
पत्ता और डाली हर्षाया है
तो समझो बसंत आया है

कोयल की राग है नियारी
सबकी लगती अति प्यारी
सुन्दर राग भी तो गाया है
तो समझो बसंत आया है

करवट बदलती है फिज़ा
सबसे अलग और है जुदा
प्रकृति में खुमार आया है
तो समझो बसंत आया है

तन प्रफुल्लित हो जाये
मन प्रफुल्लित हो जाये
प्रीत मन में गर समाया है
तो समझो बसंत आया है

फिज़ा में निखार है आई
मदमस्त बाहर भी है छाई
भंवरों का मन ललचाया है
तो समझो बसंत आया है

जीवन में नव-नव हर्ष देने
सौन्दर्य का सहज स्पर्श देने
हरियाली से जग सजाया है
तो समझो बसंत आया है

परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी
पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी
जन्म : २५/११/१९७८
निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़)
संप्रति : शिक्षक
शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा
रूचि : काव्य लेखन, आलेख लेखन, विभिन्न कार्यक्रम में मंच संचालन, अध्ययन अध्यापन
कार्य स्थल : शासकीय माध्यमिक शाला सांकरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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