शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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वहम होता है,
सितारे कभी
टूटा नहीं करते,
उड़ा के शिगूफे
ख़ुद ही,
लूटा नहीं करते,
कसैले होते हैं,
अक्सर
शिकवों के वार,
कड़वी बातों से
कभी मुंह
जूठा नहीं करते,
लौट के फिर
आ मिलता है,
अपना ही कर्मदण्ड,
आसमां की तरफ
मुँह करके,
कभी थूका नहीं करते,
उमर भर का
लेखा जोखा
होता है,
यूँ तिनको को
संभालना,
बना के अपना ही
आशियाना,
ख़ुद ही फूंका नहीं करते,
वज़ह
लापरवाही है या
और ही कुछ शायद,
यूँ हमसफर
तो कभी,
रस्तों पे छूटा नहीं करते,
माना के
शिकवे गिलों का
बोझ नहीं सँभलता,
जान बूझ कर तो,
अपनी छाती
कूटा नहीं करते,
बादलो
जी भर के
तर कर दो,
ज़मीं का जिस्म,
बिना नमीं के तो
ज़मीं में,
अंकुर फूटा नहीं करते।
परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।
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