प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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हर मुश्किल से जूझ तू, रहकर के गतिशील।
विपदाओं में ठोक दे, तू इक पैनी कील।।
गहन तिमिर डसने लगा, भाग रहा आलोक।
पर तू रख यदि हौसला, तो हारेगा शोक।।
संघर्षों को जीतकर, रचना है इतिहास।
धूमिल हो पाये नहीं, तेरी पलती आस।।
जीवन कांटों से भरा, रखना होगा ध्यान।
अनगिनत तो जंजाल हैं, लाते जो अवसान।।
बच तूू नित्य अनर्थ से, रीति,नीति ले मान।
जग तुझको देगा तभी, जीवन में सम्मान।।
जो करता है पाप को, उसका घटता ताप।
इस संसारी खेल मे, हर क्षण है अभिशाप।।
हिंसा यहाँ अनर्थ है, और छोड़ना धर्म।
मानवता के नाम पर, कर तू अच्छे कर्म।।
बच अनर्थ से नित्य ही, खुश होंगे भगवान।
तू पाएगा शान तब, कदम-कदम सम्मान।।
है अनर्थ संताप सम, हर लेता जो जोश।
मानव जाता नित्य तब, रोगों के आगोश।।
रह अनर्थ से दूर तू, तो पाएगा हर्ष।
होगा जीवन तब सुखद, जीते तू संघर्ष।।
है अनर्थ अँधियार सम, मत खोना उजियार।
जीवन को तू कर सहज, कर लज्जा से प्यार।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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