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अन्न-जल

डॉ. प्रताप मोहन “भारतीय”
ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी
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मैं बद्दी (हि.प्र.) में रहता हूं और मेरी बुआ दमोह(म.प्र.) में रहती हैं। तीन महीने पहिले बुआजी का फोन आया। उन्होंने बताया कि २५ दिसंबर
को मेरे पोते की शादी है और तुम्हे जरूर आना है। वैसे भी शादी के अवसर पर ढेर सारे रिश्तेदारों से मुलाकात हो जाती है इसलिए मेरा भी प्रयास रहता है कि मैं इस प्रकार के प्रत्येक कार्यक्रम में जरूर उपस्थित रहूं। २५ दिसम्बर को उनके यहां शादी थी मैने २३ दिसम्बर को अपना रेल आरक्षण करा के रख लिया। मैं २३ दिसम्बर को बस से दिल्ली के लिए रवाना हुआ क्योंकि दिल्ली से आगे के लिये रेलगाड़ी में आरक्षण करा के रखा था।
बस जैसे ही दिल्ली की सीमा में घुसी ट्रैफिक बहुत जाम था एक से डेढ़ घंटा इस ट्रैफिक से निकलने में लग गया। बस से उतर कर ऑटो से रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ा यहां पर भी ट्रैफिक में जाम लगा हुआ था। स्टेशन तक पहुंचने में मुझे आधे घंटे की जगह डेढ़ घंटे लगे। मेरी ट्रेन शाम को ६ बजे थी मैं साढ़े छै बजे स्टेशन पहुंचा। ट्रेन के बारे में पता किया- वो अपने निर्धारित समय पर जा चुकी थीं। इस रूट पर बसे नही जाती है और दूसरी ट्रेन भी कल थी कल जाने का कोई लाभ नही था क्योंकि सारे प्रोग्राम खत्म हो जाते। हारकर मैं वापस घर लौट आया। इसी को कहते है अन्न जल। शायद बुआ जी का अन्न जल मेरे नसीब में नहीं था। इसलिए मेरी ट्रेन छूट गयी और मुझे आधे रास्ते से वापस आना पड़ा। अन्न जल में बहुत ताकत होती हैं वह जब हमारे नसीब में होता है तो हम किसी बाधा के उसको ग्रहण करने के लिए पहुंच जाते है और जब नसीब में नहीं होता तो कोई न कोई कारण बन जाता हैं।

परिचय : डॉ. प्रताप मोहन “भारतीय”
निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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