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लोकतंत्र का पर्व

माधवी तारे
लंदन
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“ये लोकतंत्र का पर्व है
सामने काल खड़ा है
तू वोट कर, तू वोट कर”
आशुतोष राणा जी की प्रभावी वाणी में ये कविता सुनते-सुनते मुझे १९९८ में लोकसभा मतदान का दिन याद आ गया। सड़कों पर समूहों में चर्चा करते हुए लोग, बूथ पर जाकर मतदान कर रहे थे। तो कई लोग इसे छुट्टी का दिन समझ कर घूमने भी चले गए थे।
सुहासिनी के घर के सभी लोग मतदान कर आए थे। उसके पति कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे थे और कमजोरी और दर्द से कराहते हुए बिस्तर पर लेटे थे। वह उनके जागने से पहले ही मतदान कर आई थी।
कुछ समय के बाद सुहासिनी ने उनकी आवाज सुनी – “अरे मेरा सफारी सूट तो लाओ जरा मैं मतदान के लिये जाने का सोच रहा हूं कहीं मेरे एक मत का अभाव पार्टी पर भारी न पड़ जाए।”
उसने कहा – “आप कैसे जा सकते हैं, ज़रा खुद की स्थिति तो देखिये”
पर आत्मविश्वास से वे बोले- “मेरी जाने की इच्छा है”
“दो तीन मिनट रुको मैं कुछ करती हूं” ऐसा कहकर सुहासिनी घर से निकलकर मतदान कार्यालय पहुंची, अधिकारियों को यथास्थिति बताई। अधिकारी बोले – “मैडम आप निश्चिंत रहिये हम सब मिल कर उन्हें यहां ले आएंगे और उनका मतदान करवाएंगे” उसके घर पहुंचने के पहले ही सुंदर सी कार और दो तीन पुरुष घर के पास खड़े थे वे अंदर आए और सफारी सूट पहने उसके पति को कार में बिठा कर, मतदान केंद्र तक ले गए।
अधिकारी सुहासिनी को भी कर में बैठने का आग्रह कर रहे थे लेकीन वह बोली – “आप पहुंचिये मैं पैदल आ जाऊंगी आप इनको संभाल कर ले जाइयेगा।”
पति के कमजोर चेहरे पर असे हल्की सी मुस्कान दिखाई दी। थोड़े समय बाद मतदान करवा अधिकारी उन्हें अच्छे से घर ले आए, जलपान के काफी मनुहार के बाद भी वे केवल पानी पीकर लौट गए।
सुहासिनी ने अपने पति पलंग पर लिटा दिया, उनके चेहरे पर एक संतुष्टि का भाव था।
वह दरवाजे तक जा कर, सब के आभार मान कर अंदर आ गई। आंख बंद करके सोए पति के चेहरे पर कर्तव्य बोध और जागरूकता के भाव को निहारती सुहासिनी की आंखे गर्व से डबडबा गईं।

परिचय :- माधवी तारे
वर्तमान निवास : लंदन
मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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