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बड़े आराम से

विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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ब्रम्हांड भी छोटा लगे माता पिता के सामने,
गोल घेरा में गणेश प्रथम बड़े आराम से।

पढ़ना सुनना बोलना लेखन कला सूत्र होते,
मां शारदे कृपावश समर्थ बड़े आराम से।

विचार सोचकर बोलने तैयार हों जब तलक,
बेबाक इंसा बोल जाते हैं, बड़े आराम से।

काम करने की हिम्मत जुटा पाते जब तलक,
कारगुजार निपटा जाते हैं बड़े आराम से।

वतन चौकसी जवानों का दुष्कर सुरक्षा दौर,
कुछ भूलते हैं गर्व सम्मान बड़े आराम से।

माखन मटकी रखने की दुविधा जसोदा को,
नटखट कन्हैया चट करते, बड़े आराम से।

दोस्ती पैगाम ऊपरी ऊपर दमदारों का शौक,
सुदामा मित्र मानें द्वारकेश बड़े आराम से।

परम वीर पराक्रमी आजमाते रहे शिव धनुष,
शक्ति कामना से राम तोड़ें बड़े आराम से।

आदिशक्ति नवरात्रि पर्व उपासना साधनारत,
मनकामना पूर्ण दयारूपेण बड़े आराम से।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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