विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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शब्द लघु हैं गुस्सा क्षमा, व्यापक है प्रभाव।
एक म्यान में एक का, चलता है स्वभाव।।
द्वंद्व इनमें ना रहे, गुण विशेष का ताज।
अति दोनों की है बुरी, गुम हो जाती लाज।।
सटीक व्याख्या क्रोध की, करना हो श्रीमान।
भिन्न स्वरूप जांचिए, बहुत जरूरी ज्ञान।।
गलत सदा अवमानना, जिद चले प्रतिकूल।
छोटे बड़े काज जहाँ, वृहद लघु भी भूल।।
बिन गलती या डांट से, ना पले व्यवहार।
अनुशासन के नियम ही, देते हैं संस्कार।।
जब गलती खुद आपकी, होता क्रोध फिजूल।
अन्य किसी पर थोपना, अवश्य रहे निर्मूल।।
संत ऋषि मुनि गण सभी, दिखलाते आवेश।
सुंदर भविष्य के लिए, समय समय आदेश।।
दुर्वासा परशुराम का, तप बल ही वरदान।
खूबी बगैर क्रोध का, अनुचित है अरमान।।
त्रेता युग में ’राम’ का, सागर से अनुरोध।
अवमानना पयोधि की, तब भड़का था क्रोध।।
करते रहो क्षमा सदा, उचित नहीं तासीर।
वचन मर्यादा भंग हो, करो क्षीर का नीर।।
गुस्सा तजकर शांत रहो, दिखती क्षमा महान।
उचित दशा की बानगी, बना रहे अभिमान।।
अवसर देना भूल पे, जब हो क्षमा दलील।
क्षमा बदलता क्रोध में, फिर तो नहीं वकील।।
जलन बिगाड़े काम को, जानो सहित विवेक।
बचना उसकी राह से, छाए यहाँ अनेक।।
महज क्षमा की राह पे, बनते क्यों मजबूर।
बस नेकी के ढंग में, क्रोध छोड़ मशहूर।।
अपमान सहन मंत्र है, टाल सको तो टाल।
हैं वचन बद्ध श्याम भी, होता वध शिशुपाल।।
क्षमा कृत्य से आपकी, बनते कुछ बलवान।
’मुन्ना’ सदभाव योग से, बढ़ जाती है शान।।
परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़
उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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