Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

“संवेदना के स्वर” लघु कथाओं का बेहतरीन समुच्चय है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
********************

कृति – संवेदना के स्वर
कृतिकार – डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’
पृष्ठ संख्या – ८०
मूल्य – १०१ रू.
प्रकाशन – पाथेय प्रकाशन, जबलपुर
समीक्षक – प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे, (प्राचार्य) शा. जे. एम. सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)

वर्तमान की सुपरिचित लेखिका, कवयित्री, लघुकथाकार डॉ. संध्या शुक्ल ’मृदुल’ की ताजातरीन कृति लघुकथा संग्रह के रूप में जो पाठकों के हाथ में आयी है, वह है ‘संवेदना के स्वर’। इस उत्कृष्ट लघुकथा संग्रह में समसामयिक चेतना, परिपक्वता, चिंतन, मौलिकता, विशिष्टता, उत्कृष्टता व एक नवीन स्वरूप को लिए हुए उनसठ लघुकथाएं समाहित हैं।
पाथेय प्रकाशन, जबलपुर से प्रकाशित यह लघुकथा संग्रह अस्सी पृष्ठीय है जिसमें वर्तमान के मूर्धन्य साहित्यकारों एवं स्वनामधन्य व्यक्तित्वों ने अपनी भूमिका, आशीर्वचन लिखा है जिनमें डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी, डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’, प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे, कांताराय, डॉ. हरिशंकर दुबे आदि प्रमुख हैं। वर्तमान में लघुकथाएं व्यापक रूप में लिखी जा रहीं हैं, पढ़ी जा रहीं हैं और सराही भी जा रहीं हैं, पर यह नहीं कहा जा सकता है कि सभी लघुकथाएं, लघुकथाएं होती हैं, स्तरीय होती हैं और सभी को पढ़ा जाता है, सभी को सराहा जाता है, पर निःसंदेह मैं यह कहूंगा कि यदि वे लघुकथाएं ‘संवेदना के स्वर’ जैसी लघुकथाएं होंगी तो उन्हें पढ़ा भी जाएगा, उन्हें सराहा भी जाएगा और उन्हें लघुकथाओं की मान्यता भी दी जाएगी।

समीक्ष्य कृति में डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’ ने विभिन्न विषयक लघुकथाएं प्रस्तुत की हैं। हर लघुकथा वास्तव में लघुकथा है। कहीं पर भी कोई लघुकथा न तो आत्मकथ्य हैे, न संस्मरण है और न वृत्तांत है। बल्कि हर लघुकथा में लघुकथा का शिल्प समाहित है, उसमें एक संदेश है और कथ्य भी है। वर्तमान में सामाजिक विडंबनाएं हैं, नैतिक मूल्य गिर रहे हैं, रिश्ते-नाते बिखर रहें हैं, व्यक्ति स्वार्थ केन्द्रित हो रहा है राजनैतिक अवमूल्यन भी है, नारी का भी अवमूल्यन हो रहा है, पुरुष का भी अवमूल्यन हो रहा है, और दाम्पत्य का भी अवमूल्यन हो रहा है। शिक्षा के नाम पर भी व्यापार चल रहा है और व्यापार-व्यवसाय में भी लूट है। व्यापक रूप में जो विकार व्याप्त हैं, विद्रूपताएं, नकारात्मकताएं व्याप्त हैं, जो दर्द और टीस व्याप्त है उसको देखकर निश्चित रूप से हर संवंदनशील व्यक्ति की संवेदनाएं आहत होती हैं, संवेदनाएं मुखर भी होती हैं और यदि वह रचनाकार, कलाकार हैे तो वह अपनी कलाकृति, अपनी रचना के माध्यम से अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्ति देगा, भावनाओं को अभिव्यक्ति देगा क्योंकि रचना के सृजन के मूल में भावनाएं और संवेदनाएं ही होती हैं। डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’ की पूर्व की कृतियों को मैं पढ़ा हूं। उनमें भी संवेदनाएं हैं और उनकी लघुकथाओं में भी अच्छी गहरी संवेदनाएं दिखलाई देती है। वो सामाजिक विडंबनाओं को अपना दर्द और अपनी संवेदना बना करके प्रस्तुत करती हैं। इसी कसौटी व सत्य पर यह लघुकथा संग्रह भी खरा उमरता है।

देखा जाए तो वो कर्तव्य की बात भी करती हैं, अन्नदान की बात भी करती हैं, स्वच्छता का संदेश भी देती हैं, स्वतंत्रता का अहसास भी हमें कराती हैं, रोजी-रोटी की बात भी करती हैं। वे संतान के दायित्व का उल्लेख भी करती हैं, कहीं पुरानी साइकिल से भी उनका नाता जुड़ा दिखाई देता है, कहीं कन्या भोज की विडंबनाएं और यथार्थ है और वे विसंगतियों पर पिन पॉइंट करती हैं, वोे इंसानियत का जो बिगड़ता हुआ स्वरूप है, उस पर भी प्रहार करती हैं। वो सुकून सहृदयता और गुरु दक्षिणा की बात करके समाज को एक संदेश देती दिखाई देती हैं, वो मां की सीख को भी गांठ में बांधे दिखाई देती हैं। नानी का गांव की बात भी याद आती है। बुजुर्गों की छाया के माध्यम से वो भारतीय संस्कृति का बखान करती हैं। वो गोरैया की संख्या जो घटती जा रही है, खत्म ही लगभग होती जा रही है, वो चिड़ियों का चहचहाना भी याद करती हैं और ये अपेक्षा, कामना भी करती हैं, काश चिड़िया, गोरैया फिर से चहचहाए। वो अपने देश का गौरव अभिव्यक्त करती हैं। वो लघुकथा के माध्यम से भलाई की बात भी करती हैं, मानवीय मूल्यों की, चेतना की बात भी करती हैं। वो मूल में परोपकार, नैतिकता, करुणा, दया की बात भी करती हैं। उनमें श्रद्धांजली को और उसकी सच्चाई को व्यक्त करने का साहस भी है। वे बिटिया के दान की भी बात करती हैं।

वास्तव में यदि देखा जाए तो इस लघुकथा संग्रह के माध्यम से ‘मृदुल’ जी ने समाज को संदेश दिया है। उनकी लघुकथाएं केवल प्रेरक प्रसंग नहीं हैं या लघुकथाएं केवल उपदेश नहीं देती हैं, बल्कि वे एक ताने-बाने के माध्यम से एक आदर्श का बिखराव करती हैं, एक आदर्श को लोगों तक पहुंचाती हैं। कहा भी जाता है की साहित्य वो है जिसमें समाज का हित समाहित हो। संध्या जी की जो लघुकथाएं हैं उनमें समाज के लिए बहुत कुछ दिशा है, बहुत कुछ सार्थकता है और हर लघुकथा पाठक को अपने जीवन की कथा इसलिए लगेगी क्योंकि जो भी संवेदनशील पाठक होता हैे वह धरातल से जुड़ा होता है, भावनाओं से युक्त होता है और वह अपने हृदय में बहुत सारी भावनाएं, बहुत सारी कामनाएं, बहुत सारे अरमान, बहुत सारी यादें, बहुत सारा अतीत समाहित किए होता है। जैसे ही लघुकथा उसके किसी अरमान, उसकी किसी याद या उसके किसी अतीत को स्पर्श करती है वो लघुकथा उसको अपनी लगने लगती है। सशक्त रचनाकार की यह बहुत बड़ी विशेषता होती है कि वो अपने सृजन को पाठक का सृजन बना देता है। अपनी संवेदना को पाठक की संवेदना बना देता हैे, अपनी भावना को पाठक की भावना बना देता है और अपने लेखन को पाठक के जीवन का यथार्थ बना देता हैे।

निश्चित रूप से इस संग्रह की जो लघुकथाएं हैं उनको सफलता पूर्वक संध्या जी ने न केवल लिखा है, न केवल सृजा है बल्कि गढ़ा भी है। इसीलिए ये लघुकथाएं एक प्रकार से दस्तावेज हैं, समाज का दस्तावेज हैं, समाज की मूर्तता का दस्तावेज हैं, समाज की बयानी हैं। इन लघुकथाओं को हम पाठक की लघुकथाएं समझ सकते हैं, समाज की लघुकथाएं समझ सकते हैं, सार्वजनिक लघुकथाएं समझ सकते हैं। चिंतन और लेखन-सृजन तो लेखक का अपना होता है किंतु जब वो व्यापकता के साथ में लिखता है, जब वो समग्रता के साथ में लिखता है, जब वो उत्कृष्टता के साथ में लिखता है, जब वो गहनता के साथ में लिखता है, जब वो उसका केनवास बहुत विस्तृत कर देता है तो उस लेखक का सृजन, कवि का सृजन, कृतिकार का सृजन, लघुकथाकार का सृजन समाज का, पाठक का और सर्व का सृजन बन जाता है। मैं डॉ. संध्या शुक्ल जी को एक सार्थक कृति एक सार्थक सृजन के लिए बधाई देता हूं और इस कृति की उत्कृष्ट सफलता और सुयश के लिए बहुत-बहुत मंगल कामनाएं अर्पित करता हूं।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *