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वात्सल्य-करुणा की प्रतिमूर्ति- आचार्य प्रमुखसागरजी

मयंक कुमार जैन
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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चंदनं शीतलं लोके चं चंद्रमा।
चन्द्रचन्दनद्वयोर्मध्ये शीतलाः साधुसंगतिः॥

वर्तमान में आप श्रमण संस्कृति के सुविख्यात एवं प्रतिष्ठित आध्यात्मिक संत हैं। आप वर्तमान शासननायक भगवान महावीरस्वामी की परंपरा में हुए आचार्य आदिसागर अंकलीकर, आचार्य महावीरकीर्तिजी, आचार्य विमलसागरजी एवं आचार्य सन्मति सागरजी महाराज की निग्रंथ वीतरागी दिगंबर जैन श्रमण परंपरा के प्रतिनिधि गणाचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज से दीक्षित, उनके बहुचर्चित व ज्ञानवान शिष्य हैं। तथा अपनी आगम अनुकूल चर्या एवं ज्ञान से नमोस्तु शासन को जयवंत कर रहे हैं । आज से ०२ वर्ष पूर्व २०२१ में जब इटावा चातुर्मास के दौरान होने वाली पत्रकार संपादक संघ संगोष्ठी में आपके समक्ष पहुंचने का अवसर मिला और आपका वात्सल्य और आशीष से ही में अभिभूत हो गया और ऐसा लगा कि –

बहती जिनके मन में ज्ञान की अटूट धार है,
तप, त्याग, संयम की साधना अपरम्पार है||
धर्म की प्रभावना जो करते आगमानुसार है.
ऐसे गुरवर प्रमुखसागर जी को नमन हजारों बार है ||

प्राय देखा गया है की धर्म प्रभावना करना ही गुरुदेव् का मुख्य उद्देश्य रहा है। अधिक से अधिक लोगों को धर्म मार्ग पर लगाना, जिनवाणी का प्रचार प्रसार करना, ज्ञानियों में ज्ञान की ज्योति जगाना, धर्म से विमुख लोगों को सन्मार्ग दिखाना तथा साथ ही साथ आत्म कल्याण करते हुए संयम एवं चरित्र की आगमानुसार चर्या करना इसी भावना से सदा गुरुदेव ओतप्रोत रहते हैं ।सामाजिक एकता की स्थापना के लिए आप सदैव शिक्षा के क्षेत्र में सलग्न रहते है और इसके साथ ही जनकल्याण की भावना से सभी को लाभान्वित करते है आपने अनेको स्कूलों, कालेजों, अदालतों, राज्यसभाओं, विधान सभाओं मे उपदेशों, प्रवचनों से आमजनों के सांसारिक जीवन के दोषों को दूर करके उन्हें धर्म की राह पर अग्रसर करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। और विशेष बात यह है की आमजनों को आपसी मनमुटाव, वैमनस्यता, वैचारिक मतभेदों आदि बुराईयों को त्याग कर प्रेम और भाईचारे के साथ मानव समाज को अच्छाईयों की ओर आने का अनुकरर्णीय योगदान दिया है जिसके फल स्वरुप आज मुझे आपसे जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ और मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में आपके आशीर्वाद से लाभान्वित हुआ हूँ इसमें कोई संदेह नहीं है|गुरुदेव- मैं आज जो आपके समक्ष हूँ वह आप सभी गुरुओं के मंगल आशीर्वाद और मार्गदर्शन के फल स्वरुप हूँ। और कहा भी जाता है कि –

मंजिलें उन्हीं को मिलती है
जिनके सपनों में जान होती है।
पंख से कुछ नहीं होता,
हौसलों से उड़ान होती है।

आपके सानिध्य में तीर्थक्षेत्रों के निर्माण, संरक्षण, जीर्णोद्धार एवं विकास में समर्पण भाव से निष्ठापूर्वक उल्लेखनीय एवं महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आचार्य श्री ने कई स्थानों पर तीर्थे का निर्माण करवाया है। स्वाध्याय, पठन–पाठन एवं साधु की व्यावृत्ति में एवं तीर्थ दर्शन संस्कार सहित शिक्षा, अहिंसामय चिकित्सा एवं आत्म कल्याण और जन-जन के कल्याण में आचार्य श्री की विशेष रूचि है। आचार्य श्री के सानिध्य में अनेकों मुनियों की समाधियां हुई हैं। सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न जैन एवं अजैन संस्थाओं, संगठनों द्वारा आचार्य श्री प्रमुख सागर जी को अनेकों उपाधियों से सम्मानित किया गया है। आपके सानिध्य में भारत के प्रमुख महानगरों में भव्य पंचकल्याणक के आयोजन सफलता पूर्वक सम्पन हुए, और आपके द्वारा २० राज्यों की पद यात्रा ५०,००० कि.मी. की पूर्ण की गयी यह सभी के लिए गर्व का विषय हैं। और आपके द्वारा रचित अनेक कृतियाँ जैसे की १. बलिहारी गुरु आपनी २. गृहस्थ गीता, ३. प्रवचनमाला, ४. मेरे गुरुवर, ५. णमोकार, ६. णमोकार भाग-१ आदि में संस्कार, सामाजिक एकता, सदाचार आदि जीवन शैली पर आधारित है।
आपके संघस्थ मुनिश्री प्रभाकर सागर जी महाराज का वात्सल्य प्रायः :प्राप्त होता रहता है और आपके संघ में प्रति समय अनुशाशन और वात्सल्य देखने को मिलता है और आपके संघस्थ सभी साधु एवं साध्वी निरंतर स्वाध्याय, तप, ध्यान में सलग्न रहते है।
आचार्य भगवन से प्रेरित होने के बाद मेरे द्रष्टिकोण में परिवर्तन हुआ और मेरा जैन श्रमणों व साध्वियों के प्रति लगाव उत्पन हुआ। साथ ही साथ इस अवसर पर मुझे आचार्य भगवन और उनके संघ को आहारदान देने का भी अवसर इटावानगर प्राप्त हुआ था। आपकी प्रेरणा से सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों में सलग्न रहता हूँ। इसीलिए मैं मानता हूँ कि मेरे जीवन शिल्पी आचार्य प्रमुख सागरजी भी हैं।

आचार्य भगवन से तब से आज तक जुड़ा रहने का कारण मात्र गुरुदेव का आशीष और अपार वात्सल्य रहा है। गुरुदेव वात्सल्यमूर्ति के साथ अनेक विधाओं से भरपूर हैं और पग-पग पर गुरुदेव से नया सीखने को निरंतर मिलता रहा है। जैसे गुरुदेव के सानिध्य में होने वाले अधिवेशन, विद्वत सगोष्ठियां आदि अनेक आयोजनों में सम्मिलित होने का लाभ मुझे प्राप्त हुआ है। गुरुदेव प्रमुखसागरजी अनेक विधाओं से भरपूर है जैसे कि संगीत, काव्य, लेखन, प्रखर एवं ओजस्वी वक्तव्य, प्रवचनकार और कुशलप्रशासक आदि।

गुरुदेव प्रमुखसागर जी के मुखारविंद से गाया हुआ प्रत्येक भजन और काव्य पाठ मुझे अध्यात्म की ओर अग्रसित करता है परन्तु आपकी वाणी को जब भी श्रवण करता हूँ तब अपने अन्दर इसे आत्मसात करने जैसे अनुभासित होता है। गुरुदेव के द्वारा रचित सभी रचनाये, भजन, विधान, पूजन, नाटकसंग्रह और अनेक पद्यानुवाद आदि अध्यात्मिकता से ओतप्रोत हैं।

वर्तमान काल में अपने ज्ञान, आगम अनुकूल अपनी चर्या और आगम सम्मत पीयूष वर्षणी प्रमुख वाणी के प्रभाव से अध्यात्म सरोवर के राजहंस सिद्ध हो चुके हैं। आपका वात्सल्य, सरलता एवं सहजता भी ऐसी है कि जो भी आपके सान्निध्य में एक बार आता है वह आपका ही हो जाता है। आपके तप, त्याग, ज्ञान और आपकी निर्दोष चर्या और चरित्र को देखकर आपको भावलिंगी संत भी कहते है।

आपकी दैनिक चर्या में सिर्फ और सिर्फ आगम की झलक दिखाई देती है और उसमें शिथिलाचार को कोई स्थान नहीं है। देश में आचार्यश्री के नाम से कहीं भी कोई प्रोजेक्ट या निर्माण कार्य नहीं चल रहा है। इसलिए आचार्य श्री न तो धन संग्रह करते हैं और ना ही करवाते हैं। यही वजह है कि उनकी चर्या श्रावकों के लिए आदर्श और श्रमणो के लिए अनुकरणीय बन गई है।

गुरु के चरणों में स्वर्ग जैसा लगता है,
इससे दूर जाओ तो नर्क जैसा लगता है।
अगर उनके समान बन जाओ तो,
साक्षात् मोक्ष मिल जाया करता है।

आचार्य भगवान प्रमुख जी महाराज के पास ज्ञान संस्कार की चर्या एवं चर्चा देखने को निरंतर मिलती है वही सकारात्मक चिंतन, वीतरागता ,सर्वज्ञता और हितोपदेशिता आपके वाणी में भी प्रवाहित होती है। आचार्य श्री के सरल,सौम्य व्यक्तित्व एवं मौलिक चिंतन की अलग पहचान है और आपका अवदान हम सभी पर श्रेष्ठतम है | आचार्य भगवन के विराट व्यक्तित्व को शव्दों में पिरोना मेरे लिए कठिनतम कार्य होगा , फिर भी मैं गुरुदेव में सर्वोदयी संत ,प्रज्ञा मनीषी , राष्ट्रयोगी ,वात्सल्य शिरोमणि आदि स्वरूप देखता हूँ।

असम सरकार द्वारा राजकीय अतिथि अलंकरण से अलंकृत आप प्रथम जैनाचार्य हैं। मैं ऐसे परम लोकप्रिय आचार्य प्रमुख सागर जी महाराज के रजत अवतरण दिवस और संयमउत्सव एवं स्वर्णिम प्रमुख उत्सव वर्ष के अवसर पर अभिनंदन ग्रन्थ के प्रकाशन की अनेकानेक शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ। मैं ऐसे परम लोकप्रिय आचार्य प्रमुख सागर जी महाराज के चरणों में शत शत नमन करता हूँ |

“सात समंदर की मसि करों लेखनि सब बनराइ
धरती सब कागद करों गुरु गुण लिखा न जाइ।।”

संत जहाँ रहते हैं वहाँ पर्व का अंत नहीं होता। नित्य जाते हैं। आगम की सुगंध फैलाने में गुरुवर गरिमामयी केसर की क्यारी के नए पर्व समान है जो केसर कश्मीर को नहीं बल्कि सिद्धालय के पावन उद्यान की प्रतीत होती है।

जहाँ-जहाँ पड़ते हैं यह पावन चरण
वहाँ-वहाँ होते हैं स्वर्णिम काल के दर्शन
संयम, त्याग का लगता नजारा
मिट जाता सभी का मिथ्या अँधियारा
ऐसे विराट व्यक्तित्व का पावन जीवन
कुछ पृष्ठों पर आँक पाना, है यह मेरा अज्ञानपन
भला आकाश को आँचल में बाँधना कैसे संभव है,
गुरुदेव के लिए कुछ लिख पाना,
नामुमकिन ही नहीं, असंभव है ….

परिचय :- मयंक कुमार जैन
निवासी : अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
सम्प्रति : मंगलायतन विश्व विद्यालय अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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