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हम सहेलियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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हम सखियाँ,
हम सहेलियाँ,
हम हैं हमजोलियां,
बात बहुत पुरानी है,
पर प्यार, स्नेह, लगाव,
परवाह अभी भी नया है
जीवन की राह में
मिलती हैं कई सखियाँ
किन्तु कुछ ही प्रिय
और अनमोल
बन पाती हैं सहेलियाँ,
हम भी हैं कुछ
वैसी ही सलोनीयां
बरसों साथ रहे,
सुख दुख भी
बांटे साथ-साथ
बच्चे भी बन गए
आपस में सहेलियाँ!
कभी कहीं जाते
कभी कहीं जाते,
साथ थिरकते साथ गाते
साथ ही साथ हर
उत्सव मानते!
कभी कोई रूठता
कभी कोई टूटता,
आपस में मिलकर
उसे मनाते और
फिर से जुड़ जाते
गहरी सहेलियाँ!
समय बीता, साल बीते,
बच्चे बड़े हुए
थोड़ा दूर निकल गए
बालों में सफ़ेदी की
चमक आई, चेहरे पर
सिलवटें भी आ गयीं,
थोड़ा कमर भी छुकी
थोड़ा मध्यम हुए,
जिम्मेदारी के बोझ तले
कभी असहाय-लाचार भी हुईं
हम सहेलियाँ, मगर
सबको साथ लेकर,
सबको जोड़ते,
प्यार से, तकरार से,
खीज से मनुहार से,
सबको सुख देने के
प्रयत्न में लगी हुई
आज भी हैं
हम सहेलियाँ
दिलों में
अरमान संजोये हुए,
खुशी और उल्लास से भरपूर
ममता और करुणा के
रंगों में रंगी हुई,
आज भी हैं हम
पक्की सहेलियाँ!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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