सोनल सिंह “सोनू”
कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़)
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बंदिशों का पिंजरा तोड़,
उड़ जाने को जी चाहे।
तो बुरा क्या है?
अपने लिए कुछ वक्त,
चुराने को जी चाहे,
तो बुरा क्या है?
समझदारियों की बातें छोड़,
नादानियाँ करने को जी चाहे,
तो बुरा क्या है?
छोड़ बनावटी हँसी,
रूठ जाने को जी चाहे,
तो बुरा क्या है?
न सुन जमाने की,
मनमानी कर जाने को जी चाहे,
तो बुरा क्या है?
सपनों को सच करने,
जी जान लगाने को जी चाहे,
तो बुरा क्या है?
जी हुजूरी छोड़,
करने को बगावत जी चाहे,
तो बुरा क्या है?
अन्याय होता देख,
आवाज उठाने को जी चाहे,
तो बुरा क्या है?
भीड़ से अलग,
पहचान बनाने को जी चाहे,
तो बुरा क्या है?
हक के लिए,
लड़ भिड़ जाने को जी चाहे,
तो बुरा क्या है?
दिखावे को छोड़,
असलियत अपनाने को जी चाहे,
तो बुरा क्या है?
परिचय – सोनल सिंह “सोनू”
निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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