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रिश्ते

रिश्ते

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रचयिता : मित्रा शर्मा

बाग के हम फूल अलग अलग
एक धागे में पिरोए है
गुलशन हुआ चमन और
हम कितने सलीके से मुस्कुराएं है।
डूबती जा रही थी कस्तियाँ तूफानों में
हर इंसान अकेला है रिश्तों के मेले में
ज्यादा समझदारियाँ देना नही भगवान
घटते अपनापन की अहसास होगा
रिश्ते की नूर मासूमियत से ही है सदा
अपनों की छांव से सीतलता का अनुभव होगा
जीवन के अंधेरे और उजाले में हमने
कई रिश्ते टूटते देखा
इस उम्मीद पे दुनिया कायम है
रात के बाद दिन आएगा

परिचय : मित्रा शर्मा – महू (मूल निवासी नेपाल)

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