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प्रकृति

मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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शब्दों को पूर्ण वीराम ना लगाओ
शब्द, तार है मन सरगम का
छंद अलंकारों से श्रृंगारित
शब्द अवलंबन है जिव्हा का।
कर, लेखनी, काली स्याही
व्यंजन, परिमार्जन शब्दों का
शब्द चमत्कृत, शब्द झंकृत
शब्द-शब्द से कहानी है।
स्वर व्यंजन से रचा गढ है
परकोटा है अलंकारों का
अंदर बाहर गिरि गव्हर है
नव रसों की फुलवारी।
व्यंग, राग का परी तोषण करते
हास्य करें मनुहारी,
क्रोध, शांत रस दर्शाते
मानव मन के भाव को
तू अकेला नहीं, कहता कोई
अभिन्न मित्र बना लो शब्दों को।

परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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