प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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रहे अमर श्रंगार नित्य ही,
माथे का सिंदूर।
जिसमें रौनक बसी हुई है,
जीवन का है नूर।।जोड़ा लाल सुहाता कितना,
बेंदी, टिकुली ख़ूब।
शोभा बढ़ जाती नारी की,
हर इक कहता ख़ूब।।
गौरव-गरिमा है माथे की,
आकर्षण भरपूर।
नग़मे गाता है सुहाग के,
माथे का सिंदूर।।अभिसारों का जो है सूचक,
तन-मन का है अर्पण।
लाल रंग माथे का लगता,
अंतर्मन का दर्पण।।
सात जन्म का बंधन जिसमें,
लगे सुहागन हूर।
नग़मे गाता है सुहाग के,
माथे का सिंदूर।।दो देहें जब एक रंग हों,
मुस्काता है संगम।
मिलन आत्मा का होने से,
बनती जीवन-सरगम।।
जज़्बातों की बगिया महके,
कर दे हर ग़म दूर।
नग़मे गाता है सुहाग के,
माथे का सिंदूर।।चुटकी भर वह मात्र नहीं है,
प्रबल बंध का वाहक।
अनुबंधों में दृढ़ता बसती,
युग-युग को फलदायक।।
निकट रहें हरदम ही प्रियवर,
जायें भले सुदूर।।
नग़मे गाता है सुहाग के,
माथे का सिंदूर।।देव और सब सिद्ध शक्तियाँ,
फलित करें जीवन को।
आशीषों का हाथ माथ पर,
सावित्री से मन को।।
प्रीत-प्यार परवान चढ़े,
मन रहे प्रेम में चूर।
नग़मे गाता है सुहाग के,
माथे का सिंदूर।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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