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द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
अमेठी (उत्तर प्रदेश)

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द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
(समवृत्तिक (दो-दो चरण-समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण-१२ वर्ण)

(ॐ स शनये नम : !)

शनि सुनो विनती हर लो दुखा।
कर कृपा हिय में भर दो सुखा।।
तनु श्याम कुदृष्टि भयंकरा।
नसत बुद्धि, विवेक सभी हरा।।

मति हरी जिसकी उ नहीं बचा।
तनय अर्क उसे त रहे नचा।।
फलत कर्म यमी अनुसार ही।
मिलत दण्ड भरे कुविचार ही।।

शनि प्रसन्न, रहे न महादशा।
कठिन राह सभी रहते गशा।।
अभय देकर दान बता रहे।
कलुष कल्मष खेह सभी बहे।।

चढ़त तेल करू जल बीच है।
शनि दिना जब पिप्पल सिंच है।।
कटत दु:ख अपार न संशया।
शनि प्रभो जबहीं करते दया।।

सुखद जीवन मंद नहीं पड़े।
भज चलो शनि देव रहें खड़े।।
सकल सूरत में भल कुरूप हैं।
सफल न्यायिक-दाण्डिक रूप हैं।।

परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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