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रिश्ते

रिश्ते

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रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित

बांध कर रखो तो,, फिसल जाते हैं।
बंद मुठ्ठी से अक़्सर निकल जाते हैं।

खुशी ग़म दोनों हों तो खिलते हैं रिश्ते।
दिल में जगह हो,,,, तो मिलते हैं रिश्ते।

जुदाई मिलन ,,,केवल मन का बहम है।
होते ख़तम ग़र,,,,,,,,,,,मन में अहम है।

कछुए के माफ़िक़ ,,कभी ये सिमटते।
कभी दूर तक ये ,,,,,,,बस यूं ही चलते।

तेज़ी मंदी भी आती ,,,,,,कभी जोर से।
कभी सांझ लगते ये ,,,,,कभी भोर से।

धैर्य मन में हो ग़र,, तो फलते हैं रिश्ते।
लोभ लालच रहा तो,,,जलते हैं रिश्ते।

बिन रिश्तों के जीवन चला कब चलेगा?
सूर्य सर पर रहे तो,,,,, इक दिन ढ़लेगा।

नाज़ करता है बिजू,फ़क्र रिश्तों पर है।
यकीं है खुद पर,,,,,,,न फरिश्तों पर है।

 

परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत 36 वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।

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