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अधूरे होकर भी पूरे

श्रीमती विभा पांडेय
पुणे, (महाराष्ट्र)
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वे साथ रहें पूरक बन कर
पर एक दूजे के पास नहीं।
जीवन का अर्थ समेट चलते
हैं साथ भी फिर भी साथ नहीं।
वे साथ रहे पूरक बनकर …

चिंगारी भी है, समर्पण भी
है एक दूजे को अर्पण भी,
वो समांतर पथ पर चलते हैं
बनकर एक-दूजे का दर्पण भी
संकल्प लिए, श्रद्धानत हो,
अर्धांग भी हैं और अंतर भी।
वे साथ रहे पूरक बनकर …

जैसे हो किनारा और नदी
जैसे हो चंदा और धरती
जैसे हो खुशबू और पवन
जैसे अंबर और तारांगण।
चलते संग-संग शुभ यात्रा पर
कहीं मिलन नहीं फिर भी संगम।
वे साथ रहे पूरक बनकर …

एक दृष्टि में देखो एक ही हैं।
एक दृष्टि से देखो अलग कहीं।
जो अलग किया अस्तित्व नहीं
फिर तो जीवन का अर्थ नहीं।
सागर में विलीन होकर ही है
सही मिलन का सुख और सार सही।
वे साथ रहे पूरक बनकर …

परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड.
जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी
निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र)
विशेष : डी.ए.वी. में अध्यापन के साथ साथ साहित्यिक रचनाधर्मिता में संलग्न हैं ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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