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कहानी नदियों की

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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परिवेश के साथ प्रकृति की प्रवृत्तियों में भी परिवर्तन सम्भव है। होली हो गई रेन डांस व बसन्त पंचमी अब है वेलेंटाइन डे तो नदियाँ अपनी जीवन शैली क्यूँ न बदले भला। डिजिटल दुनिया तो नदियाँ भला कैसे पीछे रहती।
वर्तमान आभासी संसार की देखा-देखी नदी परिवार की मुखिया माँ गंगा ने एक कॉन्फ्रेंस काल मीट में आदेश निकाल दिया, “सभी नदियाँ अपनी खुशियाँ व गम परस्पर साँझा किया करें। जब तक समस्याएँ पता नही होगी, समाधान कैसे ढूंढेंगे ?”
माँ नर्मदे तो मानो भरी हुई बैठी थी। क्या क्या बताए? अतीत की भयावह स्मृतियाँ भुला नहीं पा रही हैं। यदा कदा चट्टानों में विचरती ताप्ती को दिल का हाल सुना देती हैं,
“बहना, तुम जानती हो मुझमें आने वाली उफ़नती बाड़ों को। उन विकराल लहरों को याद कर मेरी रूह काँप जाती है। होशंगाबाद जैसे कई इलाकों में घरों की छतों तक पानी पहुँच जाता था। कितना नुक्सान किया मैंने जन धन का। अभी मैं यदा-कदा अपने तेवर दिखा ही देती हूँ।”
ताप्ती फ़टाफ़ट चम्बल गम्भीर आदि बहनों को नर्मदा की दास्तान साँझा करती है। नटखट कहाने वाली रेवा को सब दिलासा देती हैं, “देखो दीदी, अब आपका निर्मल जल व्यर्थ नहीं जा रहा है। अरे आप तो अब गुजरात की प्यास ही नहीं बुझाती, वहाँ की भूमि को भी तरबतर करती हो। हाँ साबरमती का उद्धार करके उसका सहारा बन गई हो। तुम्हारी परोपकारिता के परचम लहरा रहे हैं। और भी कई पड़ोसियों की ललचाई नजरें तुम पर हैं। हमारी सिंधु बहन पर पहले ही पड़ोसी कब्ज़ा जमाए बैठे हैं।”
तभी महाकाल की प्यारी नन्हीं क्षिप्रा आ टपकती है, “मैं बहुत गुस्सा हूँ आपसे दीदी। ताप्ती दी ने सब बता दिया है मुझे। आप भले छुपाती रहो। अब तो आपने उज्जैनी आकर मेरा कायाकल्प कर दिया है। यूँ भी ये बेचारे धर्मप्राण कावड़िए नङ्गे पैर पैदल चल कर हमारा मिलन कराते रहे हैं। वैसे भी सिंहस्थ मेले के दौरान आप मेरी लाज रख लेती हो। आपने तो बाहों में मुझे समाकर मेरा पुनः श्रृंगार कर दिया।”
रेवा सभी नदियों को सम्बोधित करते हुए अपनी व्यथा जताती है, “माना कि मैं अपनी अनुजाओं का समय समय पर कल्याण करती हूँ। किन्तु मेरी अपना भी एक दायरा है। आखिर कब तक…।”
क्षिप्रा टोकती है, “हाँ दीदी ! ऊँट की गर्दन लंबी है तो काटने के लिए नहीं है। हम सबको इसका पुख़्ता समाधान ढूंढना होगा। वरना ऐसे तो आप भी बीमार हो जाएंगी।”
दक्षिण से कृश्णा काँवेरी एक साथ बोल पड़ी, “ये जनमानस व पण्डे पुजारी पुण्य व पैसा कमाने में लगे हैं। मोक्ष व पाप धोने के नाम पर हमें कचरा पेटी ही बना कर रख दिया है।”
दामोदर व महानदी भला पीछे क्यों रहती, सब जगह वही ढाक के तीन पात। कहते हैं सेवा के बदले मेवा मिलता है। लेकिन हमारी निर्मल देहों पर जमी गाद तक किसी को दिखाई नहीं देती। तभी मोबाइल बजता है, “दुख भरे दिन बीते रे भैया…” ताप्ती सबको शांत करती है, “ये लो गंगा मैया आ गई।”
गंगा सबको सांत्वना देती है, “सरकार द्वारा नई योजनाएँ भी बनाई जा रही हैं। हम सब को सुविधानुसार मिलाया जा रहा है। सफ़ाई अभियान भी चलाया जा रहा है। सरकार जाग गई है किन्तु जनता को भी सुधरना होगा।”
नर्मदा आँसू पोछ संयत हो सुनती है। माँ कहती हैं, बिटिया, मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। मैं तो समझती थी, तुम ह्रदय प्रदेश को सम्भाल रही हो। अपनी मौसी ब्रह्मपुत्रा के बारे में सोचो ज़रा, कितनी जहालतें सहती हैं। हाँ, मैं मैली हो गई हूँ, राम देख रहे हैं ना मुझे। तुम्हारे सिर पर तो मेरे राम के इष्टदेव शम्भू का हाथ हैं। अच्छा सोचो तो सब अच्छा ही होगा। और हाँ, एक खुशखबरी ध्यान से सुनो तुम सब, अब मेरे कई उपासक, अरे, टॉप फेन्स की पूरी फ़ौज जुटी है। एक दिन हमारे गम घटकर खुशियों में चार चाँद अवश्य लग जाएँगे।
अच्छा, अब तुम सब सुकून से सो जाओ। ये रातें ही तो राहत की लोरी गाती है, हमारे लिए। इधर नेट भी ज़रा कमज़ोर हो रहा है। गंगा मैया ने सबको आश्वस्त किया और स्वयं व्यस्त हो गई चर्चाओं में। अमेझन व नील से बात करके मिसीसिपी कांगो व यांगटीसिक्यांग से बात की। फ़िर सो गई यह सोचते-सोचते कि सबके सहयोग से ही उद्धार होगा।

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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