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गाँव की बेटी-दोहों में

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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बेटी भाती गाँव की, जो गुण से भरपूर।
जहाँ पहुँच जाती वहाँ, बिखरा देती नूर।।

बेटी प्यारी गाँव की, प्रतिभा का उत्कर्ष।
मायूसी को दूरकर, जो लाती है हर्ष।।

बेटी जो है गाँव की, करना जाने कर्म।
हुनर संग ले जूझती, सतत् निभाती धर्म।।

गाँवों की बेटी सुघड़, बढ़ती जाती नित्य।
चंदा-सी शीतल लगे, दमके ज्यों आदित्य।।

कुश्ती लड़ती, दौड़ती, पढ़ने का आवेग।
गाँवों की बेटी लगे, जैसे हो शुभ नेग।।

बेटी गाँवों की भली, होती है अभिराम।
जिसके खाते काम के, हैं अनगिन आयाम।।

खेतों से श्रम का सबक, बढ़ना जाने ख़ूब।
गाँवों की बेटी प्रखर, होती पावन दूब।।

करती बेटी गाँव की, अचरज वाले काम।
मुश्किल में भी लक्ष्य पा, हासिल करती नाम।।

गाँवों को देती खुशी, रचती है सम्मान।
बेटी मिट्टी से बनी, रखती है निज आन।।

राजनीति, सेना गहे, कला और विज्ञान।
गाँवों की बेटी करे, पूरे सब अरमान।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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