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ऐ वसन्त!

बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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ऐ वसन्त!
तुम मत लाना पानी संग पत्थर;
सरसो खड़ी है हमारे खेत में!
कुछ दिन रुक जाना,
फिर बरसाना;
पर केवल रसधार!
पकने वाली है अरहर की फलियॉ,
लगने वाली है गेहूं में बाली;
अपनी सखी हवा से कहना,
‘धीरे बहने को’ ;
लोट न जाने देना अलसी को,
जी भर कभी निहारना;
नाचते चने के ऊपर-
लहराते लतरी को!
चूक न करना कोई !
बहते रहना,
फागुन से चैती तक…
निर्बाध …
अनिन्दित…
रसमय होकर!!

परिचय :-  बृजेश आनन्द राय
निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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