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कितना कठिन होता है

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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सच, कितना कठिन, दूभर होता है
एक स्त्री के लिए ख़ुद को समझना
उससे भी कठिन औरों को समझाना

वह सोचती है सबके लिए दिल से
ख़याल रखती सभी का हर तरह से
फोड़ा जाता है बुराई का ठीकरा
बस और बस उसी के सिर पर

पेट भरती है बचा खुचा खाकर ही
सबको खिलाकर गर्म घी वाले फुलके
सुनना पड़ता है बीमार होने पर उसे
क्यों नहीं करती समय पर भोजन

राय ली जाती है उससे हर मुद्दे पर
नहीं मिलता गर मनचाहा परिणाम
कोसा जाता है उसे बेवकूफ़ कह कर
पर सफ़लता का सेहरा खुद बाँध लेते

बच्चे अच्छे निकले तो पति के होते
रक्तसम्बन्ध की दुहाई देने लगते
बिगड़ी औलाद के लिए माँ जिम्मेदार
उसी के दूध को दाग लगाते हैं सब

अपनी रुचियों को छुपा कर कबर्ड में
घर की रंगीनियों को ताज़गी देने
टूटी कूची, सूखे रंगों को धूप दिखाती
भूलती आँगन में उतरे सूरज को

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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