Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

स्नेहबंधन

स्नेहबंधन

===================================================

रचयिता : कुमुद दुबे

      शिखा लगभग तीस वर्ष बाद अपने पति सुनील के चचेरे भाई प्रखर की शादी में शामिल होने जबलपुर जा रही थी। शिखा की मां ने कह रखा था बेटा जब जबलपुर जा ही रही हो तो जगदीश चाचाजी और चाचीजी से भी मिल आना। चाचा का फोन आता रहता है। चाचा-चाची तुझे बहुत याद करते हैं क्योंकि तू ही उनके पास ज्यादा रहा करती थी। चाची के हाथ का शुद्ध घी से बना हलुआ तुझे बहुत पसंद था। वह जब भी बनाती तुझे जरूर बुलाती।
       उनकी बेटी शशी और दामाद कुछ दिन पहले ही हमसे मिलकर गये हैं वे भी कह रहे थे बाबूजी-अम्मा आप सबको बहुत याद करते हैं। बेटा उनकी भी उमर हो चली है, वे सालों बाद तुझे देखकर बहुत खुश होंगे। तुझे तो याद ही होगा, अपन जब जबलपुर में रहा करते थे, तेरे पापा का अधिकतर टूरिंग जाॅब था तब उन लोगों का बहुत सहारा हुआ करता था।
    शिखा बोली- हां मां मेरा भी बहुत मन है मिलने का। सुनील कह रहे थे कि शादी के कार्यक्रम में से निकलना हुआ और गाडी की व्यवस्था हुई तो अवश्य चलेंगे।
      शिखा का जबलपुर पहुंचने के बाद शादी कार्यक्रम में मन नहीं लग रहा था, वह अवसर ढुंढ कर सुनील को बार-बार याद दिलाती रही-एक घंटा निकाल  कर  चले चलो, चाचाजी- चाचीजी से मिल आते हैं, दोबारा आना हो न हो।
     शादी वाले घर में मेहमानों के लिये टेक्सी लगी हुयीं थी, सुनिल दो घंटे के लिये टेक्सी और ड्राईवर का इंतजाम कर शिखा से बोले प्रखर बता रहा था तुम्हारे चाचाजी का घर यहां से बहुत दूर है, पहुंचने में करीब एक घंटा लगेगा। उन्हें फोन करके बता दो और जल्दी से तैयार हो जाओ नहीं गये तो तुम वापस घर पहुंचकर चाचा-चाची की ही रामायण गाती रहोगी।
      पहुंचने की सूचना चाची को देने के साथ ही शिखा-सुनील, टेक्सी से रवाना हो गए। शिखा बहुत उत्साहित थी, उसने स्कूल-काॅलेज और फिर शादी होने तक का समय वहीं व्यतीत किया था। सोच रही थी, वह जगह अब कैसी होगी? क्या कुछ बदल गया होगा? शिखा रास्ते भर बाहर का नजारा देखे चले जा रही थी। देखा, स्कूल की बिल्डिंग जीर्ण-शीर्ण हो गयी थी, सरकारी कालोनी जहां वह रहा करती थी बड़े-बड़े पेडों के भीतर छुप गयी थी। स्कूल जाते समय रहीम चाचा की हवा -पंचर की दुकान, जहाँ कभी वह हवा भरवाती थी इतने सालों बाद भी यथावत थी। शक्ल से लग रहा था संभवत: उनके बेटे ने दुकान संभाल ली है।
     शिखा यह सब सुनील को दिखाने की कोशीश कर रही थी। सुनील को न तो शिखा की बातों में, और न ही चाचा-चाची की बातों में कोई रूची थी, वह मोबाईल में व्यस्त था। शिखा को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था वह अतीत के पन्नों में खोती जा रही थी।
    शिवा (चाचाजी का पोता) चौराहे पर पहले से खड़ा इंतजार कर रहा था। कार आती देख शिवा ने पीछे से आवाज दी बुआ बुआ..। शिखा ने कार रूकवा कर शिवा को साथ बैठा लिया। बुआ संबोधन ने शिखा को भावुक कर दिया था।वह सोचने लगी कि पीढी भले ही आगे बढ़ गई पर आज भी उस घर में मेरा परिचय बरकरार है। घर के सामने जैसे ही गाड़ी रुकी, दो जर्जर काया बाहर खड़ी दिखी। शिखा ने अंदाज लगा लिया था, हो न हो चाचा-चाची ही हैं।
      शिखा ने कार का गेट खोला और उतर कर सीधे चाची के गले लग गयी दोनों की आंखों से अश्रुमिश्रित स्नेह व प्रसन्नता की गंगा बह रही थी। चाचाजी ने भी शिखा के सर पर  हाथ रखा उनकी आंखें भी नम हो गयी थी।
       यह  प्रसंग सुनील एक ओर खड़ा देख रहा था। एक मिनट को सन्नाटा छाया रहा। फिर माहौल बदलने के अंदाज में शिवा बोला बुआ-फूफाजी  भीतर चलिये, और भी लोग आपका इंतजार कर रहे हैं।
      सुनील को यह अहसास हो गया था कि सामाजिक मूल्यों से बने रिश्ते के बंधन से किंचित स्नेह के बंधन ज्यादा मजबूत होते हैं।
    उसे चाचाजी-चाचीजी से शिखा को मिलवाने का निर्णय अब सार्थक लग रहा था।

लेखिका परिचय :-  कुमुद के.सी.दुबे
जन्म- ९ अगस्त १९५८ – जबलपुर
शिक्षा- स्नातक
सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची।
इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका।
विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)।

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर कॉल करके सूचित अवश्य करें … और अपनी खबरें, लेख, कविताएं पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com सर्च करें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और खबरों के लिए पढते रहे hindirakshak.com  कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने मोबाइल पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक के ब्राडकॉस्टिंग सेवा से जुड़ने के लिए अपने मोबाइल पर पहले हमारा नम्बर ९८२७३ ६०३६० सेव के लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *