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रास्ते का अंधा बटोही …

मानाराम राठौड़
जालौर (राजस्थान)
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मंजिल कितनी दूर है! देख ले
सपना कितना सच है! देख ले
सपना है! मंजिल की पहुंच
अपना है! सपने का मंजिल
देख ले मंजिल की राह
कांटो से भरी कंकड़ सड़क
जाते मंजिल चटक-भटक
मंजिल कितनी दूर है!
सपना कितना सुदूर है!
बटोही नहीं देखे राह अपनी
कौन कहे यह कहानी अपनी
घर आते आते ढल जाती है! संध्या
सुबह होते-होते भूल जाते हैं! सपना

परिचय :मानाराम राठौड़
निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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