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मरना किसलिए

मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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मरना किसलिए
जीने के लिए
सिमट गया मानव
अपने आप में
ताशो के पत्तों सी
फेटी जा रही है ज़िंदगी
सिर्फ स्वयं के लिए,
स्वयं के लिए
पर सुनो
तुम्हें बिखरना ही होगा
बिखरना ही होगा
चाहे छुपकर
क्यों नहो बिखरना होगा
वृक्ष के पत्तों की तरह
पिलासपन लिए
कहीं दूर बहुत दूर
जा गिरना है अपनों से
तू भूल गया की
वृक्ष फल फूल लेते हैं
दूसरों के लिए
फिर तू क्यों सिमट रहा है
अपनों में
समाज देश में कुछ
बाटता हुआ निकल जा
ताश के पत्तों सा बादशाह बन
निकल जा बेताज बादशाह।

परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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