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बासंती छटा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
अमेठी (उत्तर प्रदेश)

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माहिया- १२,१०,१२

आई-आई-आई
रितुओं की रानी
बासन्ती चहुँ छाई

बौराई अमराई
कोकिल कू कूके
खुल कलियाँ मुसकाई

फूली सरसों रानी
धरती ने रंगी
अपनी चूनर धानी

जब रह-रहकर बोले
पपिहा पिउ कहवां
मनवां विरही हौले

सूना-सूना लगता
दुअरा घर-आंगन
बिन साजन ना फबता

रिमझिम-रिमझिम बरसे
बारिश की बूँदें
कैसे न हिया हुलसे

नयना निंदिया घेरे
अलसाई घरनी
सपनों में ले फेरे

अँखियाँ खुशियाँ लौरे
महके जब मधुबन
करते गुन-गुन भँवरे

कलियाँ चहकीं महकीं
मदमाती डगराँ
बातें करतीं बहकीं

घुल-मिल कर मन नाचे
झूमे यूँ गाये
मनहर बतियाँ बाँचे

परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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