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माँ का ऋण

माँ का ऋण

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रचयिता : कुमुद दुबे

थी प्रेम और ममता की
मूरत तुम
सहनशीलता धैर्य की
प्रतिमूर्ति तुम
हीमपर्वत-सी
छटा तुम्हारी
चट्टान-सी थी
दृढता तुम्हारी
कर्तव्यों को
शिखर पर रखती
शक्ति बन पिता की
दुविधा हरती
पल-पल जीवन
सार्थक करती।
हम बच्चों की थी गुरू तुम
सत्य-पथ प्रशस्त करती
तुम्हीं तो पूरी पाठशाला थी
धर्म बल और तेज लिये
सबको स्वावलम्बी बनाती
अपना सर्वस्व जीवन
वात्सल्य हृदय से लुटाती।
अंत समय तक चलती रही,
अविरल धारा-सी तुम
जीवनभर आराम से दूर
अंतिम पडाव पर भी
शांत-चित्त
तेजस्वी मुख
ना था कोई
अवसाद माँ
सदा की तरह
जयश्रीकृष्ण कह
चीर निंन्द्रा को
आत्मसात कर गई।
मां, इस ऋण से हम
कभी न होंगे उऋण
कभी न होंगे उऋण…

लेखिका परिचय :-  कुमुद के.सी.दुबे
जन्म- ९ अगस्त १९५८ – जबलपुर
शिक्षा- स्नातक
सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची।
इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका।
विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)।

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