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वो लड़का

रमाकान्त चौधरी
लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

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सरकार चलाने वालों क्या,
तुमने ये सोचा है कभी?
वो लड़का कैसे जीता होगा,
जिसके सपने मर जाते हैं।

गाँव से आकर शहर बीच,
इक छोटे कमरे में रहता है।
सपनों को पूरा करने को,
वह रात – रात भर पढ़ता है।
फीस वो कोचिंग कालेज की,
जब भी भरने को जाता है।
मजदूरी से लौटे पापा का,
उसे चेहरा याद आ जाता है।
टीचर क्लास से बाहर करते,
जब पापा फीस नही भर पाते हैं।
वो लड़का कैसे जीता होगा,
जिसके सपने मर जाते हैं।

आते समय गाँव से मम्मी,
रख देती रोटी संग सपने।
पढ़ जायेगा जिसदिन बेटा ,
आयेंगे अच्छे दिन अपने।
जब बनकर अफसर आयेगा,
तब नई खरीदूंगी साड़ी।
मुखिया के जैसी ही मैं भी,
ले लूंगी एक मोटर गाड़ी।
सब सपने पूरे करने को,
दिन रात एक कर जाते हैं।
वो लड़का कैसे जीता होगा,
जिसके सपने मर जाते हैं।

पापा की लाठी बन पाए,
ये सोच-सोच कर पढ़ता है।
माँ का सपना पूरा हो जाए,
बस इसी सोच में रहता है।
बहन की शादी वाला पैसा,
फीस में ही लग जाता है।
माँ का एकलौता जेवर भी,
मंगल सूत्र बिक जाता है।
फिर भी रह जाता बेरोजगार,
तब जीते जी मर जाते हैं।
वो लड़का कैसे जीता होगा,
जिसके सपने मर जाते हैं।

परिचय :-  रमाकान्त चौधरी
शिक्षा : परास्नातक
व्यवसाय : वकालत
निवासी : गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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