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धरती का आंगन महका दो : गीत

धरती का आंगन महका दो : गीत

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रचयिता : लज्जा राम राघव “तरुण”

द्वेष दिवारें मिटा दिलों से,
मिलजुल कर रहना सिखला दो। ।
धरती का आंगन महका दो ….

नहीं खिले गर फूल कहो फिर,
कहां चमन की प्यास बुझेगी।
बोल नहीं होंगे मनभावन,
कैसे मन की प्यास बुझेगी।

अधर रहे गमगीन कहीं यदि,
कैसे जीवन प्यास बुझेगी।
पुलकित हो अंतर्मन सबके,
सरस मधुर संगीत सुना दो।
धरती का आंगन महका दो ….

फूल शूल मिलकर आपस में,
रहे हमेशा पूरक बनकर।
धार कुल मिल बने सरित अब,
हिलमिल मीत सहोदर बनकर।

पवन कराये सैर मेघ को,
व्योम थाल में बांह पकड़ कर।
भेदभाव हो लुप्त धरा से,
परिवर्तन का बिगुल बजा दो।
धरती का आंगन महका दो ….

कामुकता से ध्यान हटा कर,
मानवता का मान करो तुम।
कुचले और दबे तबके के,
जन-जन का अरमान बनो तुम।

सुधरे देश व्यवस्था कैसे,
कुछ इसका अनुमान करो तुम।
टीस मिटा दो अब हर दिल की,
फिर खोया विश्वास जगा दो।
धरती का आंगन महका दो ….

 

लेखक परिचय :-  नाम :- लज्जा राम राघव “तरुण” जन्म:- २ मार्च १९५४
शिक्षा :- एम. ए. (हिंदी अंग्रेजी) बी. एड.,बी. ए. (हिंदी ऑनर्स) लेखन:- कविता, लघु कथा, कहानियां, गजल देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित ।
प्रकाशन :- “आंखें देखी लघु कथाएं” लघुकथा संग्रह, “रुको तो सही एक बार” काव्य संग्रह, “आग़ाज़” गजल संग्रह।
पुरस्कार :- १. वर्ष २००४ में “महाराष्ट्र दलित साहित्य अकादमी” द्वारा “प्रेमचंद पुरस्कार”
२. २००८ में शिक्षा क्षेत्र व दहेज विरोधी आंदोलन में उत्कृष्ट कार्यो के लिए “दहेज विरोधी सम्मान”
३. शिक्षा के क्षेत्र में डीएवी संस्था द्वारा सम्मान पत्र
४. २६ जनवरी २०१२ को शिक्षा के क्षेत्र, व जनसंख्या कार्य में उत्कृष्टता के लिए जिला प्रशासन व हरियाणा सरकार द्वारा “रजत- पदक” से सम्मानित
५. १५ अगस्त २०१३ को शिक्षा के क्षेत्र व अन्य कार्यों में उत्कृष्टता के लिए हरियाणा सरकार द्वारा “राष्ट्रपति रजत-पदक” व “प्रशंसा- पत्र” से सम्मानित।
६. २०१४ में शिक्षा व साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यो के लिए “भगत श्री मेवालाल मेमोरियल ट्रस्ट” द्वारा “राष्ट्र निर्माता सम्मान” से सम्मानित।
७. २०१७ में आर .डब्ल्यू.ए. सेक्टर- ५५ फरीदाबाद द्वारा “फरीदाबाद गौरव” सम्मान
८. २०१८ में सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली द्वारा “सूर्यकांत त्रिपाठी निराला सम्मान” से सम्मानित । संप्रति:- हरियाणा शिक्षा विभाग से प्रवक्ता अंग्रेजी के “राज प्रत्रित” पद से सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन।

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