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दादू 

दादू 

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रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी

                “दादी बोलो ना, माँ घर कब आएगी?”
“बस अभी आती ही होगी बेटा” कहकर दादी ने छह साल के मुन्ना को बहलाने की कोशिश की| पर थोड़ी देर बाद फिर वही सवाल| “देखो ना दादी अँधेरा भी हो गया है, माँ तो हमेशा उजाले में ही घर आ जाती है|” पोते की एक ही रट सुनकर दादी से रहा नहीं गया और लगीं दादू को कोसने|
“इधर उसका ऑफिस जाने का समय होता है और आप उसकी गाडी की चाबी कहीं रख कर भूल जाते  हो| रोज़ देर से जाती है| देखो मुन्ना कितना परेशान हो रहा है|  मुन्ना बोला “पर दादू तो बिल्ली का रास्ता काटने जाते हैं |”
“ये क्या-क्या बोलता रहता है मुन्ना तू ?  चुप-चाप बैठ जा, माँ आती ही होगी|” इतने में आरती घर आ जाती है| मुन्ना उससे भी यही सवाल करता है| “बेटा क्या करूँ? दादू रोज़ मेरी गाड़ी की चाबी कहीं रख कर भूल जाते हैं, देर से जाती हूँ, तो आने में भी देर हो जाती है| अब दादू को क्या समझाऊँ?”
अब मुन्ना से रहा नहीं जाता “माँ वो एक बिल्ली रोज़ आपका रास्ता काट जाती है, तो दादू बोलते हैं कि पहले मैं निकल जाऊंगा तो मम्मी को कुछ नहीं होगा| इसलिए वो आपकी गाड़ी की चाबी लेकर बिल्ली का रास्ता काटने जाते हैं|” “प्लीज दादू को कुछ मत बोलो माँ ” कहकर मुन्ना रोने लगा| आरती की भी आँखें भर आईं| आज उसे अपने श्वसुर में अपने दिवंगत पिता की छवि दिखाई दी|  उसे बरबस ही वो शब्द याद आ गए जो उसके श्वसुर ने उसके पिता से कहे थे “आज से ये हमारी भी बेटी है |”
लेखिका परिचय – श्रीमती पिंकी तिवारी
शिक्षा :- एम् ए (अंग्रेजी साहित्य), मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन एडिटर
सदस्य :- इंदौर लेखिका संघ
मौलिक रचनाकार

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