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कशमकश का मंजर

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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प्रकृति का मस्त मंजर,
न आंधी तूफान का डर
न पास में समंदर,
कुदरत का दिया खाना
कुदरत का दिया पानी,
स्वछंद जिंदगी की स्वछंद कहानी,
नीला आकाश,
जंगल की मिठास,
मिलजुलकर रहना,
जीवन का हर पल उजास,
आम, अमरूद, पीपल, पलाश,
प्रकृति का बिछौना
फैले दूर तक घास,
प्राकृतिक निवासी,
जंगल के रहवासी,
कुछ आक्रांताओं की नजरें
अब शांत जंगलों पर पड़ी है,
पर्यावरण को दुहने
काली नीयत आज खड़ी है,
जंगल को बचाने
वो हर दम सजग खड़े,
कशमकश देखिए
बाहरी से तो लड़ लेंगे
लेकिन अपनी सरकार से कैसे लड़ें।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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