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चढ़ती उम्र

रमाकान्त चौधरी
लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

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बचपन पीछे छूट रहा हो,
तन पर तरुणाई आने लगे।
चंदा को मामा कहने में,
जिभ्या खुद ही सकुचाने लगे।
दर्पण में खुद को देख-देख,
जब अंतर्मन हर्षाने लगे।
जब अपना मुखड़ा अपने मन को,
मन ही मन में भाने लगे।
जब लोरी सुनने वाला बचपन,
गीत प्यार के गाने लगे।
जब प्रीति की बातें सुन कर कोई,
अपने बाल बनाने लगे।
तब दादा – दादी कहते हैं,
कि पढ़ने में ध्यान लगाना है।
चढ़ती उम्र यही होती है,
इसको बहुत बचाना है।

जब आँखों में चंचलता आए,
होंठो पर मुस्कान सजे।
पढ़ने से ज्यादा सजने पर,
जब खुद का सारा ध्यान लगे।
खींच – खींच कर सेल्फी कोई,
जब देखा करे तन्हाई में।
खुद की फोटो देख-देखकर,
घूमे घर अंगनाई में।
अपने कॉलेज दोस्तों से जब,
देर तलक बतियाने लगे।
कभी प्यार मनुहार करे,
और कभी उन्हें धमकाने लगे।
तब समझो उसका प्यारा बचपन,
निश्चित ही खो जाना है।
चढ़ती उम्र यही होती है,
इसको बहुत बचाना है।

कलम हाथ में आते ही,
कागज पर दिल का आकार बने।
उस आकार के भीतर फिर,
चुपके से कोई प्यार लिखे।
वह चीजें अच्छी लगने लगें,
जिनको करने से रोके सब।
वह बातें प्यारी लगने लगे,
जिन पर घरवाले टोके सब।
जब मम्मी पापा से प्यारा,
जीवन में कोई लगने लगे।
जब नाम हथेली पर चुपके से,
और किसी का लिखने लगे।
तब ऐसे नाजुक हालातों में,
उसे अच्छा बुरा समझाना है।
चढ़ती उम्र यही होती है,
इसको बहुत बचाना है।

परिचय :-  रमाकान्त चौधरी
शिक्षा : परास्नातक
व्यवसाय : वकालत
निवासी : गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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