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दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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दीपक बाती तेल मिल, करते तम का नाश।
अपना जीवन वार कर, जग में करें प्रकाश।।

सीता लांघी देहरी, टूटी घर की रीत।
रावण के पाखंड में, साधू वाली प्रीत।।

मां के आंचल में मिलें, ममता भरा सुकून।
कदमों में जन्नत सदा, बरसे नेह प्रसून।।

आज धर्म के नाम पर, होते कितने क्लेश।
मानवता को भूलकर, शत्रु बन गये देश।।

जय माला शोभित भाल, सूरवीर के संग।
रण में झलके वीरता, रुधिर सने हो अंग।।

ईश आस्था रखें सदा, सुख दुख में हर बार।
जीवन में सहायक है, जग का तारणहार।।

आंख शयन की प्रेयसी,नित करती अनुराग।
नेह पलक पर सींचती, नयन निंद से जाग।।

सात जन्म का साथ था, प्रीत रही अनमोल।
नेह लिप्त मीरा रही, रस जीवन में घोल।।

लगन लगी जब श्याम से, कहां रहा कुल भान।
मीरा माधव प्रेम में, विष का कर ली पान।।

सखा श्याम से भेंट कर, नैन बहाएं नीर।
देख सुदामा की दशा, हृदय कृष्ण के पीर।।

परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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