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अनुपम आभा

मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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अनुपम आभा बिखराएगी,
दीप सजाकर थाली।
अंतः का तम दूर हटेगा,
तब होगी दीवाली।।

भेदभाव, झगड़े-झंझट जब,
सारे मिट जाएँगे।
फैलेगा नूतन प्रकाश तब,
भोर नयी पाएँगे।।

जब लेंगे संकल्प नए हम,
होगी रात न काली।
अनुपम आभा बिखराएगी,
दीप सजाकर थाली।।

अमन-चैन के फूल खिलेंगे,
सतरंगी बगिया में।
सबको रोटी-कपडे़ होंगे,
अपनी इस दुनिया में।।

मानवता की जोत जलेगी
आएगी खुशहाली।
अनुपम आभा बिखराएगी,
दीप सजाकर थाली।।

सच्चाई की पूजा होगी,
सत्कर्मों की माला।
होंगे कृष्ण कर्मयोगी-से,
राधा जैसी बाला।।

रामराज्य होगा इस जग में,
बिखरेगी सुख-लाली।
अनुपम आभा बिखराएगी,
दीप सजाकर थाली।।

नेह-प्यार के संबंधों से,
महकेगा जग सारा।
सींचेगी रसधार सुधा की,
घर-घर भाईचारा।।

देख प्रफुल्लित प्रीति-वाटिका,
पुलकित होगा माली।
अनुपम आभा बिखराएगी,
दीप सजाकर थाली।।

परिचय :- मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश)
पति : पुरुषोत्तम भट्ट
माता : स्व. सुमित्रा पाठक
पिता : स्व. हरि मोहन पाठक
पुत्र : सौरभ भट्ट
पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट
पौत्री : निहिरा, नैनिका
सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूतपूर्व चेयरपर्सन।
प्रकाशित पुस्तक : पंचतंत्र में नारी, काव्यमेध, आहुति, सवैया संग्रह, पंख पसारे पंछी
सम्मान : विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा, विद्या सागर और साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा, विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, गुंजन कला सदन द्वारा, महिला रत्न अलंकरण तथा कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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