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करवाचौथ का चाँद

डॉ. अर्चना मिश्रा
दिल्ली

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यूँ तो तुम रोज़ मेरी
मुँडेर पर आकर
दस्तक देते हो
रोज़ तुमसे ढेरों
बातें भी होती हैं।
पर आज की बात
कुछ ख़ास है
आज मेरा भी रंग
तुम्हारे जैसा
दमका है
तुम्हारी शुभ्रता में
खो जाने को जी चाहता है
आज तुम्हारा इंतज़ार
कुछ ख़ास है
आज तुम मेरे प्रियतम
सखा नहीं हो
आज तुम चंद्र देव हो
जिनसे मैं ढेरों, दुआएँ
और आशीर्वाद चाहती हूं,
अपने जीवन में आ रही
सारी परेशानियों का
जवाब चाहती हूँ
जोड़ा मेरा अमर रहे,
ऐसा आशीर्वचन
बेहिसाब चाहती हूँ
तुम्हारी शीतलता में
खुद भी शीतल
होना चाहती हूँ
आज पिय के संग
तुम्हारा दीदार करूँगी
हाथ जोड़, पुष्प अर्पित कर
आज तुम्हें प्रसन करूँगी।
जन्मो जन्मांतर रहे
पिय का साथ
ऐसा वचन चाहती हूँ
रूप रंग दमके,
फूलवारी रहे सलामत मेरी
चेहरे पर ना आने पाए धूमिलता
ऐसा प्रतिदिन चाहती हूँ।
ये जो करवाचौथ का चाँद है
कितनी ही स्त्रियों का ख़ास है
उज्ज्वलता से धीरे-धीरे
लालिमा की ओर बढ़ जाते हो
इस दिन चंद्रदेव बड़ा
इंतज़ार कराते हो।
हाथ जोड़ूँ करूँ प्रणाम
विनती करूँ बारम्बार
रहे सलामत मेरा सजना
बस यही हे अरदास॥

परिचय :-  डॉ. अर्चना मिश्रा
निवासी : दिल्ली
प्रकाशित रचनाएँ : अमर उजाला काव्य व साहित्य कुंज में रचनाएँ प्रकाशित।
आपका रुझान आरम्भ से ही हिंदी की ओर था अपने स्कूल व कॉलेज के दिनो से ही मेआपने लेखन का कार्य शुरू कर दिया था। आपने अधिकतर रचनायें कविता एवं लेख के रूप में लिखी है। आपने हिंदू कॉलेज दिल्ली से हिंदी विषय से ही अपनी बीए एमए किया तत्पश्चात् बीएड और एमएड किया। साथ ही साथ आपने काउंसलिंग एंड गाइडेंस का भी कोर्स किया।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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