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रोना

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक
भोपाल (मध्य प्रदेश)

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रोने में कोई बंदिश नहीं
रोने में कोई मनाही नहीं
रोने में टैक्स नही लगता
रोने को कोई नहीं रोकता।

जब इच्छा हुई रोलो
रोना व्यक्तिगत भावना है
आंसू हमारी संपत्ति है
रोलो हल्के हो जाओ।

सारी समस्याओं का हल रोना
किसी को इससे आपत्ति नही
रुंधे गले से रो, हिचकियां ले रो
अविरल रो, सिसक के रो।

आर्तनाद करो, चीख के रो
छुपके रो, असहाय हो तो रो
छाती पीट के रो, रुदाली बनो
बेतहाशा, फफक के रो।

रोना एक ऐसी कुंजी है
जो हर विपदा से बचने हेतु
राहत का ताला खोलती है
रोना आंखों को धोता है
रोना मन को निर्मल करता है।

अश्रुसिक्त नयन
सौन्दर्य सूचक, मनमोहक
आकर्षण के द्योतक
कमल नयन, मृगनयन

रोने के पश्चात, मन में उत्साह,
उम्मीद के संचारक आंसू,
पुनः हंसी और मिलन का
स्वागत करते हैं ।

परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा पुरस्कृत हैं। आप “मैं हूं भोपाल’ के खिताब से भी सुशोभित हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा आपको अपनी एक कविता के लिए प्रशंसा-पत्र भी प्राप्त है। वर्तमान में आप एकलव्य युनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य की पीएचडी गाइड नियुक्त है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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