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अपनी उलझने

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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न मन पढ़ने में लगता है
न दिल लिखने को कहता है।
मगर विचारो में सदा
ये उलझा सा रहता है।
करू तो क्या करू अब मैं
समझ में कुछ नहीं आ रहा।
इसलिए तो हमारा दिल
अब एकाकी सा हो रहा।।

ख्यालों में डूबकर भी
कुछ देख नहीं पा रहा।
जुबा से कुछ भी अब
ये कह नहीं पा रहा।
करू तो क्या करू अब मैं
समझ में कुछ नहीं आ रहा।
इसलिए तो अब ये मन
यहां वहां भटक रहा।।

माना की मन और दिल पर
किसका जोर नहीं चलता।
समस्या कितनी भी बड़ी हो
सुलझाना तो उसे पड़ता।
जरूरी है नहीं ये की
सभी प्रश्न हल हो जाये।
हमें कोशिश हमेशा ही
करते रहना चाहिए।।

बनाई है हर मर्ज की दवा
विधाता ने दुनियां में।
तुम्हें ही खोज कर उसे
सामने लाना पड़ेगा।
और अपनी बुध्दि विवेक का
परिचय देना पड़ेगा।
जिससे मानव होने का
तुझे एहसास हो जायेगा।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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