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जीत की अंधाधुंध तैयारी

अशोक कुमार यादव
मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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आखिर एक दिन जीत जाऊंगा मेरे मन में है विश्वास।
किए जा रहा हूं तुम्हें पाने के लिए मैं अंधाधुंध प्रयास।।
अब नहीं करूंगा बर्बाद समय को यह है अमूल्य निधि।
मंजिल हासिल करने अपनाऊंगा तरह-तरह के विधि।।

यही अंतिम अवसर है मेरे लिए निरंतर चलूंगा कर्म पथ।
विजेता बन दिखाऊंगा दुनिया को आज लेता हूं शपथ।।
एक बार विफल हो गया क्या बार-बार असफल होऊंगा।
बेबस और निराश होकर अपनी चेतना को नहीं खोऊंगा।।

अनुकरण करके हो उत्साहित गलतियों में करूंगा सुधार।
अपनी कमियों को दूर करके ज्ञान अर्जिन करना है अपार।।
विद्यासागर को बनाकर हमराही बनूंगा अब किताबी कीड़ा।
सभी पन्नें को याद करके बूंद-बूंद में भरेगा ज्ञान का घड़ा।।

मन, वचन, कर्म अपना, परीक्षा एक सांप सीढ़ी का खेल।
काटे विषैला सांप तो अंतिम पायदान पर देता है ढकेल।।
चलूंगा इस बार मुंह से बीन बजाते हुए हाथ में डंडा लेकर।
मुझे भी सपेरा बनना होगा फणी को सर्पगंधा जड़ी देकर।।

विजय को विजय बनाते समझ गया हूं दुनिया की दस्तूर।
पराजित लोगों का हंसी उड़ाते खूब करते उनको मजबूर।।
कहकर नहीं मैं करके दिखाऊंगा सफलता शोर मचा देगा।
जो जन अभी गहरी नींद में है उन सोए हुए को जगा देगा।।

परिचय : अशोक कुमार यादव
निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़)
संप्राप्ति : सहायक शिक्षक
सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण ‘शिक्षादूत’ पुरस्कार से सम्मानित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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