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वर्णमाला कविता

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक
भोपाल (मध्य प्रदेश)

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अ- अवर्णीय है जो
आ- आदि अगम अगोचर
इ- इस चराचर का पालनहार वो
ई- ईश्वर सर्वे सर्वा
उ- उमंग व उल्लास भर
ऊ- ऊंची पहाड़ सी मुश्किलों में
ऋ- ऋषियों समान स्थितप्रज्ञ रहने की
ए- एक सीख देता है।
ऐ- ऐसी क्या विडम्बना कि
ओ- ओम नमः: शिवाय जप कर भी
औ- औरों की तरह हम एकाग्र चित्त नहीं होते।
अं- अंग अंग में व्याप्त प्रभु यदि कृपा करें,
अ: – अ: तो क्या कुछ नही मिलता!
क- कहां कहां नहीं ढूंढा तुम्हे
ख- खंडहरों में,
ग- गरजते बादलों मे,
घ- घर के हर कोने में,
च- चहुं ओर,
छ- छोटी-छोटी बातें समझाती है हमें
ज- जगावतार तेरी महिमा।
झ- झगडे़ हजार होते हैं
ट- टूटते रिश्ते मजहब के नाम,
ठ- ठिकाने टूटते हैं अयोध्या मे,
ड- डर लगता है सचमुच
ढ- ढेर ना हो जाएं आशाएं
त- तहस- नहस ना हो जाएं धरा,
थ- थर्रा कर फिजूल उसूलों से,
द- दनादन गोलियां चलती हैं
ध- धक रह जाता है मानव हृदय;
न- नही पसंद ये झगड़े टंटे
प- पर उठते हैं प्रश्न
फ- फसाने बनातें हैं वहीं
ब- बगुला भगत जो बनते हैं।
भ- भला इससे क्या कभी कुछ ठीक हुआ है?
म- मजहब पर क्यों बखेड़ा?
य- यह जो सांप्रदायिकता है
र- रहेगी ऐसी ही
ल- लगाव नहीं रहेगा परस्पर
व- वरन सब ठीक होता
श- शर्मनाक धर्म के ठेकेदार
ष- षडयंत्र ना करतें नाना प्रकार
स- सर्वत्र समाज में
ह- हित का ही ध्यान रखते
क्ष- क्षणिक स्वार्थ में डूबने के बजाय
त्र- त्राणदायक परमात्मा का स्मरण कर
ज्ञ- ज्ञान की सरिता बहाने का उत्तरदायित्व लेते।

परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा पुरस्कृत हैं। आप “मैं हूं भोपाल’ के खिताब से भी सुशोभित हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा आपको अपनी एक कविता के लिए प्रशंसा-पत्र भी प्राप्त है। वर्तमान में आप एकलव्य युनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य की पीएचडी गाइड नियुक्त है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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