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अधखिला फूल

रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे

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अधखिला फूल

       संजू , ओ संजू, कब तक खेलेगा दिन चढ़ रहा है..?
       काम पर चले जा बच्चा… समय पर ना पहुंचा तो सेठ दहाड़ी का पैसा काट लेगा। रमा ने अपने आठ वर्षीय बेटे को आवाज दी।  संजू मां की आवाज सुन दौड़कर आया और लड़ियाने के अंदाज में मां के कंधे पर झूलते हुए बोला मां मैं आज से काम पर नहीं जाऊंगा होटल के सेठ ने मोहन चाचा को काम से निकाल दिया है, और बडे़-बडे़ बर्तन सब मुझ से मंजवाता है। ठीक से साफ नही हुए कहकर, रुपिया भी काट लेता है।
      रमा ने प्यार से संजू को समझाने की कोशिश की …। बेटा, वहां न जा कोई और काम ढुंढ ले। इस पर संजू  पैर पटकते हुये बोला नहीं मां मैं काम पर नहीं, सामने वाले बंगले के दीपू की तरह नीली पेंट सफ़ेद क़मीज़ पहन स्कूल जाऊंगा… । इससे पहले कि संजू अपनी बात पूरी करता उसका हाथ झटकते हुये रमा ने एक चाँटा लगाया और कहा-  तुझे स्कूल की पड़ी है, तेरा बापू बीमार है, मेरा भी काम छूट गया है, तू काम पे नहीं जायेगा तो बापू का इलाज कैसे होगा..? रमा की आंखें चिन्तामिश्रीत गुस्से से लाल हो गई थी।
         संजू कभी मां को तो कभी खटिया पर पड़े दर्द से कराहते अपने पिता को देख रहा था,जो बुखार में तप रहे थे।  एक मिनट के सन्नाटे के बाद संजू गाल सहलाता हुआ झोपड़ी से बाहर निकल घर के पीछे रेल्वे प्लेटफार्म पर लगी बैंच पर बैठ सोचने लगा। वह मां का चांटा भूल चुका था उसकी आँखों में पिता का तपता हुआ चेहरा घूम रहा था, की ट्रेन की सिटी ने उसकी तंद्रा तोडी। ट्रेन के रूकते ही संजू ने पास पडे़ कचरे के ढेर से फटा-पुराना कपड़ा उठाया और कूपे में चढकर सीट के नीचे रखे चप्पल जूते सूटकेस हटाकर सफाई करने लगा। उसने बच्चों के हाथ से गिरे खिलौने व अन्य सामान मुसाफिरों को उठाकर दिये। शायद वह अपने प्रति विश्वास जताना चाह रहा था। संजू ने मुसाफिरों के आगे मेहनताना की अपेक्षा से हाथ बढाया कुछ मुसाफिरों ने एक रुपये दो रूपये पर्स से टटोल कर दे दिये कुछ उसे तकते रहे।
    सिग्नल हो गया था, संजू ने मुसाफिरों से मिली चिल्लर मुट्ठी में भीची, ट्रेन होले-होले चलने लगी थी, वह निर्भिक ट्रेन से कूदकर अगली ट्रेन के इंतजार में  बैंच पर आकर बैठ गया।
       हाथ की चिल्लर गिनते हुए भविष्य के लिये आशान्वित.. संजू!
झांकने लगा अपने दिल के झरोखे में! कुण्ठा से मुक्त …..एक दिन बापू अच्छा हो जायेगा और मां मुझे स्कूल जरुर भेजेगी।
      वह अधखिला फूल मुरझाना नहीं , पूर्ण विकसित फूल बनना चाहता था।
लेखिका परिचय :-  कुमुद के.सी.दुबे
जन्म- ९ अगस्त १९५८ – जबलपुर
शिक्षा- स्नातक
सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची।
इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका।
विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)।

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