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साहित्य और सरकार

रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव

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साहित्य और सरकार

किस प्रकार की है तेरी सियासत है कैसा इसका आकार,
प्यार मोहब्बत आग को गए फिर कैसे है तेरा शाषन साकार।
यहाँ न शिक्षा है , न रोजगार है बस जुमलों की बौछाड,
बस पैसों के हि कान सही है नही तो बहरी है सरकार।
मुँह चिढ़ाए देखो कैसे हंसता है ये अदना सा भृष्टाचार,
शिल्प सुत सब महंगे हो गए बस सस्ता है ईमान।
देखो कलम भी खो रही है अपनी ताकत हो रहा स्याही बेकार,
ईमानदारी का चोला पहने होता है पत्रकारों का व्यपार।
है जिसकी जैसी जमीर की किमत है मिलता वैसा साहूकार,
फिरता नही बिका जमीर है साहुकार आज संसद का पहरेदार।
देकर अपने मातृभूमि को गाली दिखाता है वो अपना राष्ट्रवाद,
बहाकर कतरा-कतरा लहु का सिपाही है बचाता हमारा स्वराज।
यहाँ मजबुरी और गरीबी की लगता है हर पल एक बाजार,
मुर्दों के शहर में बैठा  है जनगण लिये कफ़न उधार।
घायल है अपने विभीषण और जयचन्दों से ये भारती साम्राज्य,
फ़िर अगर मैं चुप रहा तो काहे का साहित्यकार।

लेखक परिचय :- 
नाम : ईन्द्रजीत कुमार यादव
निवासी : ग्राम – आदिलपुर जिला – पटना, (बिहार)

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