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मेरे गजानन पधारे

संजय कुमार नेमा
भोपाल (मध्य प्रदेश)

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शिव पार्वती के लल्ला
गजानंद पधारो।।
मेरे अंगना गजानन पधारो।

दस दिनों के आराधना के पर्व लेकर।।
गजानन भादो मास की चतुर्थी पर,
खुशियों उमंगो संग
हमारे गजानन पधारे।
मूषक वाहन संग घर घर गणपति जी विराजे।।
शिव पार्वती के लाडले मेरे गजानन पधारे।
खुशियों उमंग संग, ढोल बाजे संग
हमारे गजानन पधारे।
बड़े-बड़े पंडालों में गणपति सजकर विराजे।।
गणपति जी के माथे पर तिलक सिंदूर साजे ।
मोदक लड्डू संग भर-भर थाल भोग लगाते।।
केला कदली और मेवा गणपति जी को भाते।
प्रथम पूज्य प्रभु विघ्नहर्ता कहलाते।
अपने शरीर के अंगों से बुद्धि विनायक।।
तीन लोकों, को बिन बोले ज्ञान देते।
बड़ा माथा तेज बुद्धि नेतृत्व क्षमता दिखलाते।
छोटी आंख से देख सुनकर निर्णय लेने की, सीख देते।
सूप जैसे कान हिला कर संदेश देते।।
कभी किसी की बुराई मत सुनो।
लंबी सूंड का कहना हमेशा
सकारात्मक बने रहना।
बड़ा उदर गणपति जी का
यह संदेश हमें देता।
हमेशा सात्विक खाना,
बुराइयों को पेट में पचाकर रखना।
गणपति जी के ऐकदंत से मिलता यह ज्ञान।।
वेस्ट से बेस्ट बनाओ टूटे दांत से लेखनी बना डाली।।
सारी महाभारत को लिख डाली।
जब ही तो बुद्धि के देवता प्रथम पूज्य कहलाते।।
इनके बिना आमंत्रण के कोई देवता ना आते।
शिव पार्वती के प्यारे लला गजानंद कहलाये।।

परिचय :- संजय कुमार नेमा
निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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