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तिरंगे की आवाज़

विवेक नीमा
देवास (मध्य प्रदेश)

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आज़ादी की अमर कथा का,
एक-एक पहलू खोल रहा,
लाल किले के परकोटे से,
लहरान तिरंगा बोल रहा ||

भारत माँ के वीर जवानों,
सरहद पर तुम छा जाओ,
करता यदि कोई गुस्ताखी,
सबक उसे तुम सिखलाओ ||

शौर्य भगतसिंह का मत भूलो,
मत भूलो मंगल की हुंकार,
सुखदेव,तिलक और गाँधी को भी,
मुझ से तो था अतुलित प्यार ||

महफूज़ रखों इस आज़ादी को,
जो बलिदानों से आई है,
वीरों के प्राण न्यौछावर करके,
कठिनाई से पाई है ||

याद उन्हें भी करना होगा,
अहिंसा थी जिनका हथियार,
थाम रखी थी अपने हाथों
रण में नौका की पतवार ||

नमन करो उन माताओं को,
जिनने खोए अपने लाल,
डटे रहे जो अविचल होकर
चाहे शत्रु हो विकराल ||

वीरों की इन भार्याओं का,
क्या त्याग न जौहर से कम है,
खोकर अपना सुहाग देश पर
आंखें उनकी नहीं नम है||

वीरों की चिता की अग्नि मे
तुम तेज सूर्य सा पाओगे
होगा सच्चा हवन वही जब
उनकी यश गाथा गाओगे||

आज़ादी का यह अमृत वर्ष,
अति पावन हो जाएगा,
कोटि-कोटि जन का मानस जब,
जन-गण-मन को गाएगा ||

भारत माँ की वत्सल भूमि,
करती है अब खुद पर नाज़,
आज़ादी की अमर कथा को,
जब कहता पुनः तिरंगा आज ||

परिचय : विवेक नीमा
निवासी : देवास (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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