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सूर्य की गरिमा

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक
भोपाल (मध्य प्रदेश)

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माना कि मैं अलसायी
सूर्य की गरिमा हूं
बुझे हुए अलावा की चिंगारी हूं
शरद ऋतु का झडा़ हुआ पत्ता हूं
किताब का अनचाहा पन्ना हूं
पर कभी तुमने
उज्जवल सूर्य की वंदना की थी,
प्रज्ज्वलित ज्वाला की धधक देखी थी,
बसंत की बहार का लुत्फ उठाया था,
किताब के हर पन्ने का आनंद लिया था।
तो समझो मेरी व्यथा
मेरा हक छीनों मत,
मेरा हाथ खीचो मत,
संरक्षक था कभी मैं तुम्हारा
मुझे रोको मत,
मुझे टोको मत,
क्योंकि मैं सैनिक था
मैं सैनिक हूं
मैं सैनिक रहुंगा।

परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा पुरस्कृत हैं। आप “मैं हूं भोपाल’ के खिताब से भी सुशोभित हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा आपको अपनी एक कविता के लिए प्रशंसा-पत्र भी प्राप्त है। वर्तमान में आप एकलव्य युनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य की पीएचडी गाइड नियुक्त है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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