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माँ हो गई विलीन

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
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जब तक जीवित थी
मोबाइल पर अपनों के
कैसे हो से हाल चाल
पूछा करती
उसे अकेलापन महसूस
नही होता
अपनों से बात करके
नजदीकी का अहसास
कर लेती
वो पढ़ी लिखी थी इसलिए
लॉकडाउन की परिभाषा
समझती थी।
सबकी सुखद कामना
आशीर्वाद के संग हमेशा करती
माँ आरती में रखे
कपूर की तरह मायने रखती
जिसके बिना आरती अधूरी
आरती की पंक्तियां अधूरी
माँ का हँसता चेहरा
सदा मन मस्तिष्क पर रहते हुए
हर पल याद आता
माँ दरवाजे पर
खड़ी होकर अपनों की राह निहारती
अब चौखट सूनी सी
जिस पर ताला लगा
ये बताता
माँ के पास ही चाभी थी
जिससे वो
मुझ जैसे ताले पर विश्वास रखती की
घर में सुरक्षित है।
संक्रमण काल मे
जीवन को निगलने वाला वायरस
माँ को निगल गया
सारी शक्तियां, आस्था, विश्वास, रिश्तें
अशक्त हो गए
इन पर विश्वास था
वो भी बेजान हो गए
यादों का पिटारा
हर एक के मस्तिष्क में
घुमड़ रहा दुख के बादल की तरह
और संवेदना के आँसू
आँखों से गिर रहा हर पल
माँ की शक़्ल
किसी माँ में देख कर उसे निहारकर
मन मे सुकून पा लेती
माँ नही होने पर
रिश्तें रोते तो है
नींद आँखों की उड़ा ले जाते
मोबाइल की रिंगटोन
अब चौंकाने लगे
लगता जैसे माँ का
आया है फोन
माँ के नही होने पर
माँ की याद
तीज त्योहारों पर आती
किंतु
जन्मदिन पर मिठाई
फीकी हो जाती है।
माँ जहाँ बोलकर जाती
वो जगह याद आती।

परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच इंदौर (म.प्र.)
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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